Hindi Quote in Poem by Deepak Bundela Arymoulik

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टूटकर भी आदमी जी लेता है

टूटकर भी आदमी जी लेता है,
जैसे आधी रात के सन्नाटे में
टूटा हुआ चाँद
फिर भी उजाला बाँट देता है,
जैसे सूखे वृक्ष पर
कहीं दूर टहनी में
एक हरा पत्ता
अब भी सांस लेता है।

वह टूटता है भीतर ही भीतर,
उसके सपने बिखरते हैं
कांच की तरह ज़मीन पर,
पर बाहर से वह मुस्कुराता है—
क्योंकि घर की चौखट पर
रोते हुए चेहरे का कोई मूल्य नहीं होता।

आदमी टूटा तो बहुत बार है,
बेवफ़ा रिश्तों की चोट से,
समाज की कटु निगाहों से,
रोज़ी-रोटी की भागदौड़ में
कुचले हुए अरमानों से।
फिर भी हर सुबह
वह आँखें खोलता है,
अपने बच्चों की हँसी के लिए,
अपने माँ-बाप की दवा के लिए,
अपने जीवन की जिम्मेदारियों के लिए।

टूटकर भी आदमी जी लेता है—
क्योंकि उसे जीना पड़ता है।
उसके आँसू किसी को दिखाई नहीं देते,
वह उन्हें तकिए के नीचे दबा देता है,
रातें करवटों में काट देता है,
और सुबह वही चेहरा पहन लेता है
जो दुनिया देखना चाहती है।

उसकी आत्मा जब-जब चूर होती है,
तब-तब वह भीतर से
और कठोर बनता जाता है,
जैसे आग में तपकर
लोहे की धार और तेज़ हो जाए।

आदमी टूटकर भी जी लेता है,
क्योंकि उसके भीतर कहीं
उम्मीद की एक छोटी लौ
अब भी झिलमिलाती रहती है,
क्योंकि वह जानता है—
अंधेरा चाहे कितना भी घना हो,
भोर का उजाला
कभी बुझता नहीं।

आर्यमौलिक

Hindi Poem by Deepak Bundela Arymoulik : 112000989
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