सुकून के हर पल में, प्रेम का ही एहसास
जिन्दगी की आपाधापी में भी
इक दुसरों का ख्याल रखना..
किसी भी जिम्मेदारी से मुख नहीं मोड़ना.
हंसते हुए बड़ी तत्परता से आगे होकर
अपने समकक्ष के मुखड़े को हंसते हुए देखना..
यही तो प्रेम है..
हे प्रिय ! फिर प्रेम में उद्दीपन कैसा--
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मौसम बदलता है बदलता रहे
लाख रूकावटें हों झंझावातों की
कुशलता का हाल पूछ लेना
मूर्धन्य कलाकार की भूमिका निभाना
प्रेम का ही सोपान है
यही तो प्रेम है
हे प्रिय ! प्रेम में उद्दीपन कैसा--
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चाहे कितने ही पतझड़ हो जीवन में
सावन बसंत बहार बनकर तत्परता दिखाना
लाखों करोड़ों की भीड़ में भी सिर्फ और सिर्फ
अपने समकक्ष की खुशियाँ देखना
यही तो प्रेम है
हे प्रिय! प्रेम में उद्दीपन कैसा--
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बदलाव तो प्रकृति का नियम है
फिर भी अंतरंग मन से
बखूबी हर रिश्ते को निभाना
सबका ख्याल रखना
यही तो प्रेम है
हे प्रिय!!!! प्रेम में उद्दीपन कैसा--
--डॉ अनामिका--
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