(माँ
बेआवाज़ करुण गाथा)
वो सब सह जाती है...
फिर भी चुप रहती है।
कभी रोटी सेंकते वक़्त जलती है,
तो कभी शब्दों की आग में।
पति की उपेक्षा,
बच्चों की चुप्पी,
ससुराल की अपेक्षा,
और अपने अस्तित्व की छाया-सी उपस्थिति।
वो माँ है…
पर खुद के लिए कोई नहीं।
🌿
"जो माँ सबको जीवन देती है,
क्या उसका आत्म-सम्मान इतना सस्ता है?"
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