मैं और मेरे अह्सास
ढलती शाम
ढलती शाम का लुत्फ़ उठा लेने दो ज़रा l
प्राकृतिक सौंदर्य का मजा लेने दो ज़रा ll
बड़े बेईमानी हो गये है दुनिया वाले तो l
मोहब्बत का पाठ पढ़ा लेने दो ज़रा ll
खिली हुई कलियां, भीगी सी फिझाएं l
सौंदर्य निगाहों में समा लेने दो ज़रा ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह"सखी"