" जब मैं चला..."
जब मैं चला,
तो रास्तों ने मुझे रोका नहीं
शायद उन्हें आदत थी,
लोगों के बिन बताए चले जाने की।
पर तू...
तू वो मोड़ थी,
जिसे छोड़ते वक़्त दिल ने हज़ार बार पलटकर देखा,
और जुबां ने बस एक ही बात कही —
"अच्छा चलता हूँ, दुआओं में याद रखना..."
मैंने ये अल्फ़ाज़ कहे,
जैसे कोई दरवाज़ा धीरे से बंद करता है,
कि कहीं आवाज़ न हो,
पर भीतर सब कुछ टूटा हो।
मेरे जाने के बाद,
अगर कभी तेरे कमरे में चुप्पी कुछ ज़्यादा लगे,
तो समझ लेना —
वो मेरी बातों की आदत थी।
तेरी दुआएँ...
शायद अब भी मेरे पीछे चल रही हैं,
कभी हवा में, कभी ख्वाब में,
कभी किसी पुराने गाने की लकीर में
मैंने वादा नहीं किया था लौटने का,
क्योंकि अलविदा में झूठ नहीं होना चाहिए।
पर मैंने दुआओं की बात की
क्योंकि वहां से लौटना ,
कभी मुमकिन नहीं होता।