Hindi Quote in Shayri by pintu majhi

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आज फिर लगा कि...

आज फिर लगा कि कुछ छूट गया है,
भीड़ में चलते-चलते मैं रुक गया हूँ।
खुशियों की चादर ओढ़े जो चेहरे थे,
उनके पीछे कोई ग़म छुप गया है।

आज फिर लगा कि रिश्तों की भीड़ में,
एक अपनापन कहीं खो गया है।
जो बातें थी दिल से दिल तक जाने की,
वो शब्दों में भी अब दम तोड़ गया है।

आज फिर लगा कि मुस्कान नकली थी,
अंदर कुछ रोता-सा शख़्स बैठा था।
आईना देख हँसते थे जो लोग कभी,
अब परछाइयों से भी डर गया है।

आज फिर लगा कि वक़्त से हारा हूँ,
मगर हार के भी कुछ सीखा हूँ।
जीवन की भीड़ में खोया हूँ भले,
पर भीतर कहीं मैं जीता हूँ।

✍️ डॉ. पंकज कुमार बर्मन,कटनी,
मध्यप्रदेश
- pintu majhi

Hindi Shayri by pintu majhi : 111986342
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