आँखें उनकी झील सी, डूब गए घन श्याम।
प्रेम सरोवर में हुई, कभी सुबह से शाम।।
भरी सरोवर गंदगी, जल कुंभी शृंगार।
दूषित जल करने लगा, कष्टों की बौछार।।
केश हुए अब मेघ सम, यौवन की दहलीज।
पक-पक कर झरने, मन में आती खीज।।
चतुर्मास का है समय, ध्यान ज्ञान का योग।
इष्ट देव की भक्ति कर, भग जाएँगे रोग।।
हरियाली मन भावनी, मिलती सबको छाँव।
नदी किनारे सज गए, हैं कछार के गाँव।।
मनोज कुमार शुक्ल मनोज