संवाद था- वक्त बदल रहा है. अब औरतें मर्दों की ग़ुलाम नहीं रहेंगी. तब बी.आर. चोपड़ा और पंडित मुखराम शर्मा की जुगलबंदी खूब जमी. उन्होंने खूब सामाजिक फ़िल्में दीं. इन्हें देखने के लिए दर्शक उमड़ते रहे.
साधना तलाक हास्य से भरपूर लोकप्रिय रोमांटिक कॉमेडी थी. इसके अलावा दादी मां, जीने की राह, और गृहस्थी जैसी अनेक फिल्में लिखीं.
सवाल अहम है कि मुखराम शर्मा जैसे दिग्गज लेखक के प्रभा मंडल के दौर में सलीम-जावेद या फिर गुलजार ने कैसे अपने लिए जगह बनाई. वास्तव में सलीम-जावेद और गुलजार जिस दौर में सिनेमा में आते हैं तब भारतीय समाज तेजी से बदल रहा था