नव-वर्ष की पूर्व संध्या में
सभी मित्रों को
स्नेहिल धन्यवाद
जो बीते वर्ष में
बने रहे साथ
बने रहे संबल
एक-दूसरे के
कुछ लम्हे बाँटते रहे जो
सुख के, दु:ख के
प्यार के, दुलार के---
सही हैं सबने न जाने
कितनी पीड़ाएं
विश्व भर की घनी
आपदाएं
झंझोड़ा है मन को,तन को
सहे हैं कितने व्याघात
बुने गए जाल पीड़ा के
अंतर में
जिनकी चर्चा भी
थर्रा देती है तन को, मन को
हे धरती पर भेजने वाले!
तू ही बता, इंसान इस
व्यथा को कैसे संभाले?
इतना करना करम
न हो कोई ऐसी व्यथा
सुरक्षित रहें बेटियाँ
संभली रहें ख़ुशियाँ
करना इतना करम
न टूटे तेरी आस्था का भरम
इस वर्ष में
न हो कोई
व्यर्थ का
वाद-विवाद!
ये जो पसर गए हैं न
मन की गलियों में
ईर्ष्या, क्रोध,अहं
उनका न हो संवाद
यूँ तो ज़िंदगी का
हर पल एक चमत्कार सा
बहता रहा है उम्र भर!
एक साल क्या
पूरी उम्र का भी तो
पता न चला!
नव-वर्ष, नव-कल्पनाएं
नव-गीत, नव-आशाएं
हर वर्ष डालता है झोली में
कितनी आशाएँ हो जातीं ख़त्म
व्यर्थ की आँख मिचौली में
दे सबको ऐसा वरदान, अहसास, विश्वास, आस
कुछ तो हो इस वर्ष ऐसा ख़ास
जीवित रहे इंसानियत
धरती पर उतरने की
बनी रहे इंसान की नीयत!!
अंधकार को रोशन कर लें स्नेह - प्रेम के फूल खिला लें
कोशिश कर लें इक छोटी सी
रूठों को भी चलो मना लें!!
एक आस, विश्वास सहित
स्नेह सबको
डॉ प्रणव भारती 💐🥰💐
- Pranava Bharti