उपन्यास : जीवन एक संघर्ष
उपन्यासकार : किशोर शर्मा 'सारस्वत'
कुल भाग : 42, कुल पृष्ठ : 940
आज समीक्षा : भाग 19 की
कथानक : कविता आईएएस में सफलता के बाद अपना प्रशिक्षण पूर्व करने पर उप खंड अधिकारी के पद पर नियुक्त हो गई, उस स्थान पर जिसके अंतर्गत राधोपुर गाँव भी आता था। कविता राज्य सचिवालय में नियुक्ति के बजाय किसी ऐसे ही स्थान पर पदस्थापन चाहती थी जहाँ कुछ अच्छा कर भ्रष्टाचार को समाप्त कर सके।
ज्वाइनिंग के समय उसने स्टाफ को अपना परिचय न देकर देखना चाहा कि उनके काम करने का ढंग कैसा है हालांकि उसे उनका रवैया देखकर आश्चर्य हुआ क्योंकि पूरा स्टाफ कामचोर था तथा वहाँ पर तो भ्रष्टाचार का ही बोलबाला था।
कविता ने सबको बुलाकर उन्हें धिक्कारा साथ ही सुधरने का फरमान जारी कर दिया कि वह अब यह और सहन नहीं करेगी।
एक पखवाड़े में ही पूरे कार्यालय का कायाकल्प हो गया। लोग नई एसडीएम की सराहना करने लगे।
उपन्यासकार ने कविता को सही स्थान पर पदस्थापित करके कथानक को रोचक बना दिया है क्योंकि पाठकों की विशेष तौर पर रुचि राधोपुर गाँव में है जहाँ कहानी का नायक रमन गाँव के उद्धार हेतु सिविल परीक्षा का मोह छोड़ पाठशाला खोल कर बैठा है, बावजूद स्थानीय विधायक एवं मंत्री तथा सरपंच बेहद भ्रष्ट हैं जबकि नवनियुक्त एसडीएम के रूप में कविता भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए कृतसंकल्प है।
कुछ सन्दर्भों का उल्लेख यहाँ आवश्यक हो जाता है:
- 'आप थोड़ा सब्र रखिये, जीवन बाबू चाय पी रहे हैं। अभी आ जाएँगे, जितनी देर आप लाइन में खड़े होने का कष्ट करें। डेमोक्रेसी भी क्या आई, लोग सिर पर ही सवार होने लगे हैं। किसी में दो मिनट भी सब्र रखने का धैर्य नहीं रहा है। जिसको देखो, वही राशन-पानी लेकर ऊपर चढ़ा रहता है।' (पृष्ठ 298)
एसडीएम ऑफिस में यह संवाद उस नव-पदस्थापित एसडीएम को कहे जा रहे हैं जो बिना अपनी पहचान बताए ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने की प्रार्थना के उत्तर में एसडीएम कविता को सुनने पड़ते हैं। लेखक ने यहाँ वर्तमान में बतौर व्यंग्य ऑफिस की कार्यप्रणाली का रोचकता व हास्य का पुट देते हुए खाका खींचा है।
- 'इन लोगों को खुद को तो घर पर चैन है नहीं, दूसरों को भी दो मिनट आराम से नहीं बैठने देते। चलो भाई चलो, अपनी-अपनी सीटें संभालो, वरना ये शांति के दुश्मन हमारा जलूस निकाल कर रख देंगे।' (पृष्ठ 299)
यहाँ स्टाफ के अन्य सदस्य के मुख से यह कहलवाया गया है। यानी पूरे कुएं में ही भांग पड़ी है।
- 'मैंने आज यहाँ आकर जो देखा है, उससे मुझे बहुत कष्ट पहुँचा है। आप लोगों का काम करने का तरीका बहुत ही घृणित और कलंकित किस्म का है। मैं चाहूँ तो इसके लिए तुम्हारे विरुद्घ अनुशासनिक कार्रवाई हेतु कड़े कदम उठा सकती हूँ। परन्तु जानते हुए भी मैं ऐसा नहीं कर रही हूँ। क्योंकि मैं तुम्हें तुम्हारी अपनी भूल सुधारने के लिए एक मौका देना चाहती हूँ।' (पृष्ठ 303)
लेखक द्वारा नई ईमानदार एसडीएम की इस चेतावनी के जरिए सब-कुछ स्पष्ट कर दिया है।
अब देखना यह है कि एक ईमानदार अफसर और भ्रष्ट मंत्री के बीच ऊँट किस करवट बैठता है।
जो पाठक इस रोचक उपन्यास को पढ़ने से वंचित हैं, उन्हें कल व आगामी अंकों की बेसब्री से प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।
समीक्षक : डाॅ.अखिलेश पालरिया, अजमे