Hindi Quote in Book-Review by Kishore Sharma Saraswat

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उपन्यास : जीवन एक संघर्ष
उपन्यासकार : किशोर शर्मा 'सारस्वत'
कुल भाग : 42, कुल पृष्ठ : 940
आज समीक्षा : भाग 17 की

कथानक : जगपाल चौधरी के घर ग़जब तमाशा हो गया...इधर अगली सुबह राजू के पिताजी रमेश कुमार ने आकर राजू के साथ जयवंती के विवाह की स्वीकृति दे दी जिससे जगपाल के घर पुन: उत्सव का माहौल हो गया। रमन ने भी राजू के गले मिलकर उसका उपकार माना लेकिन उधर गुंजनपुर से भी वरपक्ष के लोग भी वास्तविकता जानकर दूल्हे को लेकर जगपाल के घर आ पहुँचे थे। जब जगपाल ने उन्हें बताया कि अब तो बेटी के विवाह के लिए दूसरा दूल्हा तलाश लिया गया है तो गुंजनपुर से आए दूल्हे संदीप को यह बात नागवार गुजरी और वह सुंदरता की प्रतिमूर्ति जयवंती से विवाह के लिए अड़ गया। अंतत: स्वयं उसे दुल्हन द्वारा ना कह देने पर उसे संदीप के पिता बलवान सिंह डाँटते-पुचकारते हुए गुंजनपुर ले गए।

उपन्यासकार ने इस भाग में कहीं यथार्थ तो कहीं नाटकीय रोचकता परोसते हुए हास्य का वातावरण उपस्थित कर दिया है जो निम्न संवादों से स्पष्ट हो जाता है:
- 'ये गाँवों की राजनीति बहुत घटिया किस्म की होती है।यहाँ पर बगैर किसी बात के ही एक-दूसरे के घोर-विरोधी और दुश्मन बने फिरते हैं। किसी ने अच्छा खा लिया, अच्छा पहन लिया तो दुश्मनी। किसी ने विरोधी पार्टी को वोट डाल दिया तो दुश्मनी। छोटी-छोटी बातों को लेकर मरने-मारने तक उतारू हो जाते हैं।' (पृष्ठ 276)
- 'मैं इन लोगों की रग-रग से वाकिफ हूँ। किसी तरह अगर चार पैसे जुड़ भी जाएँ तो ये लोग उन्हें अपने बच्चों की परवरिश या पढ़ाई पर खर्च करने की अपेक्षा व्यर्थ के झगड़ों और मुकदमों पर बरबाद कर देते हैं।' (पृष्ठ 276)
- आए हुए मेहमानों के लिए चाय-पानी का इंतजाम किया गया। कुछ प्रबुद्ध लोग बीच में दखल देकर बात को संभालने लगे। बलवान सिंह ने अपनी गलती मानते हुए पूरे घटनाक्रम का खुलासा किया तो सुनकर सभी स्तब्ध रह गए। अपने गुर्गों के माध्यम से इस बात की खबर केहर सिंह सरपंच तक भी पहुँच चुकी थी। इसलिए अपनी किरकिरी होने से बचने के लिए वह पहले ही भूमिगत हो गया। (पृष्ठ 282)
- 'क्यों लड़की क्या पाताल में से पैदा होती है, जो लड़के आकाश से टपकते हैं? जन्म देने वाले तो वही माँ-बाप होते हैं। फिर लड़के और लड़की का भेदभाव किसलिए?' (पृष्ठ 283)
- 'जयवंती, मैं कोई गैर नहीं हूँ, तुम्हारा मंगेतर हूँ। मेरे बाबूजी ने अपनी गलती मान ली है। और फिर घर आए मेहमान को तो दुश्मन भी माफ कर देता है।' (पृष्ठ 286)
- 'मंगेतर है नहीं, था। वो रिश्ता तुम्हारी ओर से कल खत्म हो गया। औरत कोई हाट या बाजार में बिकने वाली वस्तु नहीं है, जिसे जब चाहा कीमत चुका कर हासिल किया जा सकता हो।' (पृष्ठ 286)
- 'मुझे देखे और जाने बगैर इतना बड़ा लांछन जो मेरे ऊपर लगा दिया गया, उसे मैं कैसे भूल सकती हूँ। ऐसे में जिस भले घर के इंसान ने मेरा हाथ थाम कर मेरे परिवार को मिट्टी में मिलने से बचाया है, मेरे लिए वही सब-कुछ है। (पृष्ठ 287)
लेखक ने प्रत्येक पात्र की मनोदशा का विस्तार से दिग्दर्शन कराया है, साथ ही कथानक के प्रवाह तथा प्रभाव में कहीं कोई कमी नहीं आने दी। यही उनकी लेखनी की सफलता है।

समीक्षक : डाॅ.अखिलेश पालरिया, अजमे

Hindi Book-Review by Kishore Sharma Saraswat : 111962522
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