बात फुलोंकी चल रहीहै,
तो हमें भी याद किया जाए ।
कुछ खासियत हमारी खुली है,
गौर उस पर भी फरमाया जाए!
खुशमिज़ाजी हमने कायम रखी है,
कुछ सैर बियाबान में भी की जाए । (बियाबान =जंगल )
बात होती क्यों है,गुलाब की फकत ?
खुद ही पनपनेकी जो फितरत
हमारी भी जरा देखी जाए।
-वर्षा शाह