आँखों के पर्दे नम हैं सूखने की चाह में
फूल मुरझाए तो बिछ गए कांटे राह में

ज़ीस्ते-रंग उड़ा लगे दुनिया बेरंग सी ये
भटक गए ठोकर से जीना है गुमराह में

फलक तक जाने का ख़्वाब टूट चुका
किनारे बहता हुआ पानी बना बराह में

बिखर गया रत्ती रत्ती तूफ़ा रुकने तक
बटोर रहे मिट्टी फूटते बोल हैं कराह में

दाग लगा दामन में तब हालत न देखी
मनाने आ गए सारे जश्न मेरी तबाह में

गए थे लाने आसमा महकते फूलों का
समझे न साज़िश को थे इतने फराह में

© आलोक शर्मा

Hindi Shayri by ALOK SHARMA : 111702218
ALOK SHARMA 3 year ago

धन्यवाद !😊

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now