नारी सशक्तिकरण और उसका आर्थिक आधार


नारी सशक्तिकरण के लिए उसका आर्थिक पक्ष सुदृढ़ होना बहुत जरूरी है । तभी वह समाज में भी सशक्त खड़ी हो सकेगी । आप देख-समझ सकते हैं कि समाज में नारी हो या पुरुष , उसके सशक्तिकरण में अर्थ यानि धन की महती भूमिका रहती है । यहाँ तक कि हमारे समाज में मंदिरों में विराजमान भगवान भी वही बड़ा हो जाता है , जिस पर ज्यादा चढ़ावा आता है । इसके दूसरे पहलू को आप ऐसे भी देख सकते हैं कि जिस भगवान की आराधना करने से घर में धन-समृद्धि आती है , उसी भगवान के मंदिर में चढ़ावा अधिक आता है । दूसरे शब्दों में वही अधिक सम्मान और श्रद्धा का अधिकारी होता है । फिर इंसान की तो औकात क्या है । समाज का जो नियम बड़े-छोटे मंदिरों में विराजमान भगवानों पर लागू होता है , वह इंसान पर भला कैसे न लागू हो ?
जब हम स्त्री-पुरुष समानता की बात करते हैं , तो पाते हैं कि आज भी आर्थिक दृष्टि से हमारे देश की स्त्री सशक्त नहीं है । संविधान और सर्वोच्च न्यायालय की व्यवस्था के बावजूद पिता की संपत्ति पर बेटी-बेटा को समान अधिकार नहीं मिल रहा है । कैसी विसंगति है कि एक पिता खुद तो अपनी संपत्ति में बेटी का भाग सूनिश्चित नहीं करता और यह आशा करता है कि उसकी बेटी को ससुराल जाते ही उसके के पति की पैतृक संपत्ति में हिस्सा मिल जाए । परिणाम वही ढाक के तीन पात । पति की पैतृक संपत्ति में हिस्से तो बँट जाते हैं , परन्तु स्त्री आर्थिक स्तर पर अधिकार-शून्य ही रहती है । इसका परिणाम होता है , समाज में पुरुष की तुलना में स्त्री के किसी भी निर्णय को कम महत्त्व मिलना और स्त्री का दोयम दर्जे पर बने रहना ।

Hindi Quotes by Dr kavita Tyagi : 111562940
Vipin Sharma 3 year ago

जानना चाहता हूँ "कोरवी प्रदेश की लोक संस्कृती" पुस्तक की लेखिका आप ही हैं ?

Vipin Sharma 3 year ago

प्रणाम मैडम

Dr kavita Tyagi 4 year ago

धन्यवाद रुचि जी

Dr kavita Tyagi 4 year ago

धन्यवाद शेखर जी

shekhar kharadi Idriya 4 year ago

यथार्थ विचार...

Ruchi Dixit 4 year ago

पीड़ादायक, सत्य

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