काव्योत्सव
विषय - हास्य
कविता
आओ खेलें खेल
आओ खेलें खेल भाई आओ खेलें खेल
जनता सारी चूहा बनेगी
हम नेता सारे बिल्ली
भीतर-भीतर घात चलेगा बाहर-बाहर मेल
आओ खेलें खेल भाई आओ खेलें खेल
आचारों का अचार बनेगा
नीति की चटनी
दिन दूनी बढ़ेगी अपराधों की बेल
आओ खेलें खेल भाई आओ खेलें खेल
धन भरा है खज़ाने में
जमकर लूट मचाएँगे
छुक-छुक चलती रहेगी लूट की हमारी रेल
आओ खेलें खेल भाई आओ खेलें खेल
हाथ में जाम का प्याला
बगल में सुंदर रमनी
बेहयाई की सीमा को देंगे दूर धकेल
आओ खेलें खेल भाई आओ खेलें खेल
कब कहाँ सेंध लगेगा
कौन कहाँ मरेगा
पता लगाने में होंगे सारे तंत्र फेल
आओ खेलें खेल भाई आओ खेलें खेल
पहरेदार हैं अपने गुलाम
हर अमला खुशामद करेगा
विरोधियों की नाक में डालेंगे नकेल
आओ खेलें खेल भाई आओ खेलें खेल।
भोला नाथ सिंह