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एक रोज़ की बात है जब वो शरमाया करते थे, वादे निभाया करते थे, पर कुछ बात छुपाया करते थे। क्या बात थी वो हर बार हसी छुपा लेती थी, वो मुस्कुराहट सब कुछ भुलाया करती थी। हर बार बात टाला करते थे, पूछते थे तो वो अकड़ दिखाया करते थे। जब कुछ दिन गुजरे कुछ अकेली राते, सुबह भागे, शाम को रात से काटे। लोगो से पूछा, लोगो को समझा, शब्दो को टटोला, लहेजे को जानाl जानके हस पड़े नादानियों पे, जिनपे जान लगाया करते थे, वो ढोंग रचाया करते थे। -નિ શબ્દ ચિંતન
समेट ले खुदको थोड़ा अभी बहोत काम बाकी हे, कुछ कंकड़ ही मिले हे अभी तो, पत्थर का आना बाकी है। अभिसे क्यू सोचू क्या कर पाया अपने लिए, अभी तो शुरू हुआ रास्ता हे, मंजिल का आना बाकी हे। -નિ શબ્દ ચિંતન
कुछ खास बात करते हैं, आइए फिर से उस बात को याद करते हे। वो बात जो अधूरी रह गई, वो बात जो केह ना पाए, वो बात जो चलते चलते रूक गई, वो बात जो कोइ समझ ना पाया, और वो बात भी जो समझा ना पाए। -નિ શબ્દ ચિંતન
वो सुनाऊं, जो लोग कहेते हे , या वो सुनाऊं, जो लोग करते हे ? वो कहेते हे, सच हमेशा जीता हे, पर खुद झूठसे जीतते हे। वो कहेते हे, दिलसे साफ रहो, पर खुद साजिशे करते हे। में सच्चा नही वो झूठे नही, फर्क यही हे की, हम मानते हे उन बातो को जो कही जाती है, वो एसी गलतफहमी पालते नही। -નિ શબ્દ ચિંતન
શુ તમે મારી પ્રથમ વાર્તા "દ્દષ્ટિભેદ" વાચી ? તમારા પ્રતિભાવ આવકાર્ય છે. 😊 -નિ શબ્દ ચિંતન
ભુલ ક્યાં થઈ ? વિચારવાનુ એ હતુ કે "સમજાવવા કઈ રીતે ?", વિચારવા એ લાગ્યા "ના સમજયા તો શું ?" -નિ શબ્દ ચિંતન
Everybody's story narrated in one poem. i have tried my best to describe the feelings. i hope it will touch you someday.
Teatime thoughts
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