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प्रकृति से ही है संसार, प्रकृति से ही है नई बहार, पर लोग भूल मातृभूमि को, जाते हैं देश से बाहर, प्रकृति से ही है........... प्रकृति के बिना कैसा संसार, सब सूना सूना लगता है, जब ना आए प्रकृति की बहार, प्रकृति को देख खिलता है, बच्चों का संसार, प्रकृति से ही है.......... प्रकृति के रंग निराले हैं, कहीं धूप, कहीं छाया और कहीं आसमान काले हैं, इतना सब कुछ मानव को देने के लिए, करता हूं मैं उस परमात्मा का सत्कार , प्रकृति से ही है.......
पुकारने के लिए एक नाम जरूरी है, सुबह होने के लिए शाम जरूरी है, जिंदगी तो कट जाती है आराम से, पर जीने के लिए एक मुकाम जरूरी है।
मत पूछो हवाओं से रास्ता उनका, हवाएं तो चलती रहती है। ना दे इस बात पर ध्यान तू , कि दुनिया क्या कहती है।
MY Mother at sixty six Driving from my parent's home to Cochin last Friday morning. I saw my mother, beside me, Doze, open mouthed her face ashen like that of a corpse and realised with pain that see might not live long. ........... but soon put that thought away, and looked out at young trees sprinting, the merry children's spilling out of their homes, but after the airport,s security check, standing a few yards away, I looked again at her........... ...................wan, pale as a late winter's moon and felt that old familiar ache, my childhood's fear, but all I said was, see you soon, Amma, all I did was smile and smile and smile.............
## kosis jari rakhe ##
कह देने से कुछ मिलता नहीं, कहने पर तो पत्ता भी हिलता नहीं, पानी दिए बिना पौधा भी खिलता नहीं, मेहनत से सवरती है जिंदगी, मेहनत किए बिना कुछ मिलता नहीं
## जिंदगी बदलनी है तो सबसे पहले अपनी सोच बदलिए ## ✨✨✨
## खुशी से अपना जीवन व्यतीत करें ##
अग्निपथ वृक्ष हों भले खड़े, हों बड़े, हों घने, एक पत्र छाँह भी मांग मत! मांग मत! मांग मत! अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ! तू न थकेगा कभी, तू न थमेगा कभी, तू न मुड़ेगा कभी, कर शपथ! कर शपथ! कर शपथ! अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ! यह महान दृश्य है, देख रहा मनुष्य है, अश्रु, स्वेद, रक्त से लथ-पथ, लथ-पथ, लथ-पथ, अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!
बढ़े चलो बढ़े चलो न हाथ एक शस्त्र हो न हाथ एक अस्त्र हो न अन्न वीर वस्त्र हो हटो नहीं, डरो नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो।। रहे समक्ष हिम-शिखर तुम्हारा प्रण उठे निखर भले ही जाए जन बिखर रुको नहीं, झुको नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो।। घटा घिरी अटूट हो अधर में कालकूट हो वही सुधा का घूंट हो जिये चलो, मरे चलो, बढ़े चलो, बढ़े चलो।। गगन उगलता आग हो छिड़ा मरण का राग हो लहू का अपने फाग हो अड़ो वहीं, गड़ो वहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो।। चलो नई मिसाल हो जलो नई मिसाल हो बढो़ नया कमाल हो झुको नहीं, रूको नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो।। अशेष रक्त तोल दो स्वतंत्रता का मोल दो कड़ी युगों की खोल दो डरो नहीं, मरो नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो ।
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