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Varsha Upadhyay

Varsha Upadhyay

@varshaupadhyay9290


स्वर

जितना जितना
जीवन का मर्म
बुन लेती हूं मैं,
उतना उतना
ईश्वर का स्वर
सुन लेती हूं मैं ।
प्रार्थना के धागों से
मन के अनुरागों से
संतुलन कर्मों का
कर लेती हूं मैं
भ्रम के अंधेरे में
बिखरे नगीनों को
फिर से चुन लेती हूं मैं।
ईश्वर का स्वर ऐसे
सुन लेती हूं मैं

शब्दों के चांटे,
धोखों के कांटे,
जिन जिन ने बांटे,
आभार ,अनुग्रह
उनका कर लेती हूं मैं
मांग कर सुख उनका
ईश्वर का स्वर
सुन लेती हूं मै।।

प्रारब्ध की डोर,
कोई ओर ना छोर,
क्षमा के मोती में
आस की ज्योति
पिरो लेती हूं मैं ।
कर्म की गठरी को
होले होले हल्का
कर लेती हूं मैं ।

ईश्वर का स्वर ऐसे
सुन लेती हूं मै।
वर्षा उपाध्याय

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रिश्ते

कभी जुड़े जुड़े ये रिश्ते ,
साथ होकर भी मुड़े मुड़े ये रिश्ते.
कभी हंसते ,कभी सिसकते
रेत की तरह हाथ से फिसलते ये रिश्ते .
एक अजब सा माया जाल है
रिश्ते जिंदगी का बबाल है
कभी सहारा तो कभी ढाल हैं
अक्सर खामोशियों में शोर मचाते हैं रिश्ते
पुकारो तो कहीं दुबक जाते हैं रिश्ते
कभी पंतवार बने ,कभी मंझधार बने
कभी सर पर टंगी तलवार बने
मन को कभी गुदगुदा जाते हैं रिश्ते
बिखरे नहीं ,टूटे नहीं ,हाथ से कभी छूटे नहीं
निभाने हैं दिल में सजाने हैं रिश्ते
रिश्ते ये रिश्ते ,जैसे हैं रिश्ते
वर्षा उपाध्याय

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