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क्या कहूँ अपनी कहानी वो दूसरों से अलग तो नहीं वही भाव में लिए चलती हूँ जो कहीं तुझ में भी है वही सुख कम दुख ज्यादा नजर आते हैं ज़िंदगी से प्यार के पल कम नजर आते हैं
आज में अपने कल से मिलने जा रही हूँ ये सोच कर कि कल हो या ना हो
जिन्दगी का क्या है भरोसा कुछ पता भी नही चलता कि चलने वाली सांसे कब धोखा दे जाती हैं हसीं कब आँसू में बदल जाती है मत गवाओ कोई भी पल वरना यही कहते रह जाओगे की काश ज़ी लिया होता बीता पल आज हमने खोया है अपने एक साथी को जिसने किया था वायदा की नौकरी से आराम लेकर जी लेंगे हम जिन्दगी अपनी
https://maankikahani.blogspot.com/
चलो एक बार मुढ़ कर बचपन जी ले अपना बहुत दिन हो गए हम खुल कर हँस भी नहीं सके
घर की दीवार से लगता वो सन्नाटा । जो पसरा था खुले से मैदान में ।। सोच थी कि कोई नहीं है वहां पर । अनुभुति हुई कि हवा भी आकार लेती है।। जैसे कोई पुकार रहा हो कहा रहा हो । अपनी अनसुलझी कहानी जो सुनाना चाहता हो।। पर मशगूल ज़माने में गुम हाय हो गया । भीतर की बात अपने में ही दबाए । चाहत होती है की कान लगा कर सुनूँ । पर काम की व्यस्तता में भूल जाती हूँ कान लगाना । आज फिर विचार आया। आज मैं सुनकर ही रहूंगी दास्ताँ उसकी। गयी भी उस कोने तक । जहाँ से वो दीवार सटी है । हवा का झोका फिर मेरे गालों को छू कर कहा गया आप बीती । अनुभूति फिर जगी । और सुनी उसकी कहानी मैंने। उन तरंगो से जो हवा में तिरती है एक कसक के साथ कि चला तो गया काश की कुछ ऐसा कर जाता सोच के साथ। पर वही जिन्दगी जीकर जो हम सभी जिए चले जाते हैं । एक उबाऊ कहानी जो हमारी कहानी से अलग नहीं । चलो आज कुछ नया रचते है ,जो हवा बन कर आकार ले इससे पहले क्या कुछ नया रचा जा सकता है विचार अच्छा है पर समय देना होगा खुद की पहचान को। ताकि इतिहास बनने से पहले अपना खुद का इतिहास रचे ।
बीता हुआ हर दिन मौत के समान है, जो गया तो लौट कर नही आता जैसे कि अपना कोई प्रियजन
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