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दीपावली विशेषांक " शीर्षक "कैसे हम दीप जलाएंगे।" *****"******"******* जड़ _चेतन सब मल मल धोया, कब मन की मैल मिटाएंगे? बुझी चेतना के रहते, कैसे हम दीप जलाएंगे। कितनी कालिख जमी हुई है, उजले _उजले तन के भीतर। कर्म काण्ड कह ईश्वर छोड़ा, कलि (कलयुग) लाए आंगन के भीतर। लक्ष्मी पूजन गणपति मंगल, क्या_ क्या ढोंग रचाएंगे..? जब तक मन के दीप जले ना , कैसे देहरी दीप जलाएंगे। जड़ चेतन सब मल मल धोया, कब मन की मैल मिटाएंगे ? अधम अधर्मी रावण का वध, कर जब रघुबर आए थे। अवध नगर के सब पुरवासी, घर _घर दीप जलाए थे। हम मन के भीतर रावण ले, कैसे दीप जलाएंगे। जड़ चेतन सब मल मल धोया, कब मन की मैल मिटाएंगे? सियाहरण के एक पाप को, जानें कितनी बार जलाए। जल गए पुतले रावण के पर, हम रावण घर _घर ले आए। बुझ गए जो चंद्र तक जाकर, क्या वो दीप जल पाएंगे ? जड़ चेतन सब मल मल धोया, कब? मन की मैल मिटाएंगे। बुझी चेतना के रहते, कैसे हम दीप जलाएंगे ? ~vandana rai ✍🏻
ओ मनुष्य! अपने बौद्धिक स्तर को, कितना गिरा रहे हो। इक ही पल में कितने, रूप दिखा रहे हो। भाषा और मर्यादा का , कोई तो पैमाना रख लो। आप तो दिन प्रति दिन, बस..गिरे जा रहे हो। ~vandana rai ✍🏻
जब छुआ तुमने दुपट्टे की ओट से.. हो गई थीं मैं परिजात सी पावन..! गिरने न दिया था धरा पर अश्रु मेरे चांदनी बिखरी थीं उस पल मेरे आंगन..! अब क्यों ऐसे चंद्रमा की चित्तियो से मेरे मन की पावनी उन चिट्ठियों से कर रहे परछाइयों से मन ये घायल..! टूटे स्वप्नों को अंधेरी कोठरी में नृत्य की झंकार खोकर रोई पायल.!!! ~vandana rai ✍🏻
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