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https://www.matrubharti.com/book/19925705/resign -- अशोक असफल https://www.matrubharti.com/bites/111794790
नए बादशाह ने गद्दी संभालने के बाद पुरानी बादशाहत की सारी निशानियां मिटाने का मन बना लिया ताकि लोग उन्हें भूल जाएं और नए युग का आरंभ हो जाए। नया इतिहास रचने के लिए उसने शाही कलाकार को बुलाकर नई मूर्तियां बनाने का आदेश दे दिया। यह सुन कलाकार रोने लगा... राजा ने पूछा कि- क्यों भाई, क्यों? तो उसने कहा कि- वे मूर्तियां भी मैंने ही बनाई थीं जिन्हें आपने तुड़वाया... यह मूर्तियां जो आप बनवा रहे हैं, इन्हें भी कोई नया बादशाह तुड़वाएगा! हर मूर्ति के टूटने पर मेरा दिल टूटता है, इसलिए अब मैं अपने हाथ कटवा लूंगा पर कोई मूर्ति नहीं बनाऊंगा। ** राम_रावण_आज_फिर_मैदान_में एक संघर्ष कर रहा है पाँव-पैदल चलकर जुल्म-भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा रहा है और भाड़े के टट्टुओं से धक्के खा रहा है अपमान सह रहा है... दूसरा अननोन विलोम कर रहा है ध्यान के आनन्द में मदमत्त कीमती समय मंदिर-मंदिर भ्रमण में गंवा रहा है पुष्पक में जिंदगी के मजे लूट रहा है और लालचियों से सम्मान पा रहा है... बोलो किसे चुनोगे? वास्तविक संघर्ष वीर को या ढोंगी महावीर को! **
कविताएँ दूसरों को खुशी प्रदर्शित करने वे पटाखे बनाते हैं राजनेता और उनके अहलकार तक पटाखे चलाते/ चलवाने को करते हैं प्रेरित जबकि पटाखों से फैलता है प्रदूषण! पटाखा फैक्टरियों में अक्सर आग लगने से मरते हैं बेमौत मंजूर पर मजबूर हैं बनाने पटाखे क्योंकि यही एक रोजगार है उनके पास ** मंदिर में कैद कर रहे हो मुझे जिससे धोबी का दुखड़ा न सुन सकूं मंदिर मैं कैद कर रहे हैं मुझे ताकि ताड़का, सुबाहु, विराध, बाली और रावण का वध न कर सकूं... हां कर दो मंदिर में कैद मुझे जिससे शबरी, जटायू से नहीं मिल सकूं नहीं छुड़ा सकूं सोने की लंका से सीता को नहीं निभा सकूं निषाद, विभीषण, सुग्रीव से मित्रता कैद रहूं तुम्हारे दिव्य भव्य मंदिर में नहीं जाकर कर सकूं धान सस्ते और जेवरात महंगे नहीं मिल सकूं किसी दुखिया से उसका दुखड़ा सुनने खोया रहूं तुम्हारे भेंट, उपहार तुम्हारे मंत्रोच्चार तुम्हारे यज्ञ के धुएं और डांस परफॉर्मेंस में। ** बड़े लड़ैया महुबे वाले ---------------------- उनमें एक से बढ़कर एक खिलाड़ी उन्होंने आजादी की लड़ाई हित घोड़े के पाँव में ठुकी नाल की टीस और मुंह में लगी लगाम का स्वाद नहीं चखा पर राष्ट्रवाद को भुनाया रार नहीं ठानी यानी कायरता अपनायी पर हार नहीं मानी यानी सेंध लगायी सेंधमारों को गले लगाया खरीदा/अपनाया फिर लात लगायी भावनाओं की धुरी पर टिके इस महादेश को जाति का हवाला दे गरीबी का हवाला दे राम का हवाला दे भुनाया मीडिया को खरीदा न्यायालय को दबाया विपक्ष को डराया और अंततः ईवीएम में भी हेरफेर कर जीत का पुरज़ोर नगाड़ा बजाया अब उन्हें कोई हटा नहीं सकता अब उन्हें झेलना ही होगा अब उनके रंग में रंगना ही होगा अन्यथा वे आपसे आपका रंग निकाल जैसे फूलों से उनका रंग निचोड़ होली खेली जाती है! खेलेंगे तिल से उसका तेल निकाल कपास को उसमें भिगो दीप बाला जाता है! आपके दिल के तेल और आपकी खोपड़ी के कपास से दीवाली मनाएंगे नारा उसका लगाएंगे जिसने धर्म रखने वनवास लिया जिसने अंतिम आदमी का भी मान रखने उस प्रिया को तजा जिसका पता पक्षियों, पशुओं, भौंरों, लताओं और पत्तों से पूछा वे सचमुच बड़े खिलाड़ी हैं उनमें एक से बढ़कर एक खिलाड़ी है कोई किसान के लिए कोई बहन के लिए कोई गरीब के लिए तो कोई बीमार के लिए/भूखे के लिए कसम पर कसम खाता है यहां तक कि ईश्वर और संविधान की कसम को भी भुनाता है! बड़े गर्व से उस माटी का कर्ज चुकाता है जो अपने ही बेटों के लहू से लाल है! **
मातृभारती पर मैंने अपना "लीला" नामक धारावाहिक उपन्यास भेजना शुरू किया है, जिसकी अभी चार किश्तें प्रकाशन हेतु भेजी हैं। यह संपूर्ण उपन्यास 30 किश्तों में है। मैं इसमें प्रतिदिन एक किश्त जोड़ना चाहता हूं। क्या यह आपको मंजूर है? मेरा प्रश्न मातृभारती के संपादक से है। लेखक - अशोक असफल
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