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तुम पढ़ सकते हो तो क्या हर बात लिखूँ? मैं लिख सकती हूँ तो क्यों हर ख़यालात लिखूँ? ज़मीं पर पांव दबोच कर जो दे सकते हो जवाब तो चलो आसमा पर सवालात लिखूँ! तुम्हें रोशनाई की चादर मुबारक तुम्हारे कहे दिन को मैं क्यों दिन मे रात लिखूँ? लोग देखेंगे जरूर ये तमाशा चंद पलों की मशहूरी को क्यों ताउम्र के हालात लिखूँ? जाने दो! एक आखिरी बार सही काग़ज़ के कोरे सीने पर अपने कोरे जज़्बात लिखूँ तुमसे एक मुलाक़ात लिखूँ! मैं लिख सकती हूँ चलो ये ख़यालात लिखूँ, तुम पढ़ सकते हो तो चलो ये बात लिखूँ! -सुषमा तिवारी
प्रश्न→1- जीवन का उद्देश्य क्या है ? उत्तर→ जीवन का उद्देश्य उसी चेतना को जानना है - जो जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है। उसे जानना ही मोक्ष है..!! 📒 प्रश्न→2- जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त कौन है ? उत्तर→ जिसने स्वयं को, उस आत्मा को जान लिया - वह जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है..!! 📒 प्रश्न -3-संसार में दुःख क्यों है ? उत्तर→लालच, स्वार्थ और भय ही संसार के दुःख का मुख्य कारण हैं..!! 📒 प्रश्न→4- ईश्वर ने दुःख की रचना क्यों की ? उत्तर→ ईश्वर ने संसार की रचना की और मनुष्य ने अपने विचार और कर्मों से दुःख और सुख की रचना की..!! 📒 प्रश्न→5- क्या ईश्वर है ? कौन है वह ? क्या रुप है उनका ? क्या वह स्त्री है या पुरुष ? उत्तर→ कारण के बिना कार्य नहीं। यह संसार उस कारण के अस्तित्व का प्रमाण है। तुम हो, इसलिए वे भी है - उस महान कारण को ही आध्यात्म में ‘ईश्वर‘ कहा गया है। वह न स्त्री है और ना ही पुरुष..!! 📒 प्रश्न→6- भाग्य क्या है ? उत्तर→हर क्रिया, हर कार्य का एक परिणाम है। परिणाम अच्छा भी हो सकता है, बुरा भी हो सकता है। यह परिणाम ही भाग्य है तथा आज का प्रयत्न ही कल का भाग्य है..!! 📒 प्रश्न→7- इस जगत में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है ? उत्तर→ रोज़ हजारों-लाखों लोग मरते हैं और उसे सभी देखते भी हैं, फिर भी सभी को अनंत-काल तक जीते रहने की इच्छा होती है. इससे बड़ा आश्चर्य और क्या हो सकता है..!! 📒 प्रश्न→8-किस चीज को गवाॅंकर मनुष्य धनी बनता है ? उत्तर→ लोभ..!! 📒 प्रश्न→9- कौन सा एकमात्र उपाय है जिससे जीवन सुखी हो जाता है ? उत्तर → अच्छा स्वभाव ही सुखी होने का उपाय है..!! 📒 प्रश्न →10- किस चीज़ के खो जाने पर दुःख नहीं होता ? उत्तर → क्रोध..!! 📒 प्रश्न→11- धर्म से बढ़कर संसार में और क्या है ? उत्तर → दया..!! 📒 प्रश्न→12-क्या चीज़ दूसरो को नहीं देनी चाहिए ? उत्तर→ तकलीफें, धोखा..!! 📒 प्रश्न→13- क्या चीज़ है, जो दूसरों से कभी भी नहीं लेनी चाहिए ? उत्तर→ इज़्ज़त की लालसा, किसी की हाय..!! 📒 प्रश्न→14- ऐसी चीज़ जो जीवों से सब कुछ करवा सकती है ? उत्तर→मज़बूरी..!! 📒 प्रश्न→15- दुनियां की अपराजित चीज़ ? उत्तर→ सत्य..!! 📒 प्रश्न→16- दुनियां में सबसे ज़्यादा बिकने वाली चीज़ ? उत्तर→ झूठ..!! 📒 प्रश्न→17- करने लायक सुकून का कार्य ? उत्तर→ परोपकार..!! 📒 प्रश्न→18- दुनियां की सबसे बुरी लत ? उत्तर→ मोह..!! 📒 प्रश्न→19- दुनियां का स्वर्णिम स्वप्न ? उत्तर→ जिंदगी..!! 📒 प्रश्न→20- दुनियां की अपरिवर्तनशील चीज़ ? उत्तर→ मौत..!! 📒 प्रश्न→21- ऐसी चीज़ जो स्वयं के भी समझ ना आये ? उत्तर→ अपनी मूर्खता..!! 📒 प्रश्न→22 दुनियां में कभी भी नष्ट/ नश्वर न होने वाली चीज़ ? उत्तर→आत्मा !! 📒 प्रश्न→23- कभी न थमने वाली चीज़ ? उत्तर→ समय आप से विनम्र आग्रह है कि, उपरोक्त दिए गए प्रश्नों के उत्तरों को अपने जीवन में उतारने का प्रयत्न करें , जीवन आनंदमय एवं सुखमय बनेगा! 🙏🏻
सुंदरकांड में एक प्रसंग अवश्य पढ़ें ! “मैं न होता, तो क्या होता?” “अशोक वाटिका" में जिस समय रावण क्रोध में भरकर, तलवार लेकर, सीता माँ को मारने के लिए दौड़ पड़ा, तब हनुमान जी को लगा, कि इसकी तलवार छीन कर, इसका सर काट लेना चाहिये! किन्तु, अगले ही क्षण, उन्हों ने देखा "मंदोदरी" ने रावण का हाथ पकड़ लिया ! यह देखकर वे गदगद हो गये! वे सोचने लगे, यदि मैं आगे बड़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि यदि मै न होता, तो सीता जी को कौन बचाता? बहुधा हमको ऐसा ही भ्रम हो जाता है, मैं न होता, तो क्या होता ? परन्तु ये क्या हुआ? सीताजी को बचाने का कार्य प्रभु ने रावण की पत्नी को ही सौंप दिया! तब हनुमान जी समझ गये, कि प्रभु जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं! आगे चलकर जब "त्रिजटा" ने कहा कि "लंका में बंदर आया हुआ है, और वह लंका जलायेगा!" तो हनुमान जी बड़ी चिंता मे पड़ गये, कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा ही नहीं है, और त्रिजटा कह रही है कि उन्होंने स्वप्न में देखा है, एक वानर ने लंका जलाई है! अब उन्हें क्या करना चाहिए? जो प्रभु इच्छा! जब रावण के सैनिक तलवार लेकर हनुमान जी को मारने के लिये दौड़े, तो हनुमान ने अपने को बचाने के लिए तनिक भी चेष्टा नहीं की, और जब "विभीषण" ने आकर कहा कि दूत को मारना अनीति है, तो हनुमान जी समझ गये कि मुझे बचाने के लिये प्रभु ने यह उपाय कर दिया है! आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि बंदर को मारा नहीं जायेगा, पर पूंछ मे कपड़ा लपेट कर, घी डालकर, आग लगाई जाये, तो हनुमान जी सोचने लगे कि लंका वाली त्रिजटा की बात सच थी, वरना लंका को जलाने के लिए मै कहां से घी, तेल, कपड़ा लाता, और कहां आग ढूंढता? पर वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा दिया! जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं, तो मुझसे करा लेने में आश्चर्य की क्या बात है ! इसलिये सदैव याद रखें, कि संसार में जो हो रहा है, वह सब ईश्वरीय विधान है! हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं! इसीलिये कभी भी ये भ्रम न पालें कि... मै न होता, तो क्या होता ? #forwarded
सोचा है?
विचार...
ख्वाहिशें संपन्नता किसे कहते हैं? शायद उसे ही जो उनके पास था। अच्छी नौकरी, बढ़िया घर, फिर आराम से रिटायर्मेंट, बिटिया अपने पैरों पर खड़ी और उसकी अच्छे घर में शादी, लड़का भी पढ़ लिखकर विदेश में सेटल हो गया था। कुछ था जो उन्हें यहीं बांधे हुए था अपनी मिट्टी से जोड़े हुए.. किसी की यादें उन्हें अपना देश छोड़ने नहीं दे रही थी या यूं कहें छोड़ने के लिए किसी ने जिद भी नहीं की। अकेले रहना पहले कभी उतना ना खला उन्हें जब तक पत्नि की तस्वीरों को घण्टों निहारते समय कट जाता था। आँखों की रोशनी ने साथ छोड़ना शुरू किया तो बेटे ने विदेश से फटाफट आकर आँखों का ऑपरेशन करा दिया। अब कुछ दिन के अंधेरे के बाद रोशनी फिर दस्तक देने वाली थी। सब कुछ ठीक चल रहा था। फ़िर भी कुछ तो था जो खल रहा था। श्रीमती जी के जाने के बाद जैसे जिंदगी ने मुँह मोड़ लिया हो। शरीर के बुढ़ापे से ज्यादा मन का बुढ़ापा तंग कर रहा था। उस दिन खिड़की पर उदास खड़े बाहर से आ रही हवा को चेहरे पर बस महसूस कर पा रहे थे। चेहरे की परेशानी देख कर बेटे ने पूछा जो छुट्टियों में पिता के आँखों का ऑपरेशन कराने घर आया हुआ था, " पापा! क्या हुआ परेशान लग रहे हैं?" "बेटा! इन आंखो के ऑपरेशन ने तो अंधा बना के रख दिया है, अब मैं सुबह-सुबह टहलने भी नहीं जा पा रहा हूँ, समझ ही नहीं आ रहा है कि सुबह की शुरुआत अगर ऐसे हुई तो बाकी पूरा दिन कैसे काटूं?" " डोंट वरी पापा!! मैंने सारा इंतजाम किया है.. टहलने के लिए मैं देखिए क्या लाया हूँ.. ये सफेद छड़ी ले कर जाएं आप, कोई तकलीफ नहीं होगी।" पिता ने छड़ी लेकर उसे प्यार से सहलाया और बाहर चले आए। टहलते हुए मन मे सोचा " बेटा! काश चलते-चलते छड़ी के बदले, तुम्हारी उँगलियों का स्पर्श.. तुम्हारा साथ मिल जाता ग़र.. जिंदगी थोड़ी सी और आसान हो जाती " पर वो अनकहा.. अनकहा ही रह गया। संतप्त मन के ताप से गर्म हवायें उठ कर फुटपाथ से सूखे पत्तों को किनारे लगा रही थी। वो राह उन्हें अकेले ही तय करने थी। ©सुषमा तिवारी
सुनो प्रेम की पराकाष्ठा तक मुझे प्रेम करने वाले मेरे जाने के बाद भी याद रखना कुछ नहीं बदलेगा मृत्यु और कुछ नहीं बस एक अगला पड़ाव है जैसे मैं केवल अगले दूसरे कपड़ों में हूँ मैं मैं रहूंगी और तुम तुम रहोगे हमारे बीच कुछ ना बदलेगा हम एक दूसरे के लिए जो भी थे, हम वही रहेंगे सुनो! जब भी मेरी याद आए मुझे दिल से पुकारना आसान है ये इतना मुश्किल नहीं हमेशा की तरह जैसा तुम करते हो अपने स्वर में कोई अंतर न रखना संताप या दुःख की कोई मजबूरी ना पहनना तुम हँसना.. क्योंकि हम हमेशा हंसते थे छोटे छोटे चुटकुलों पर जैसे पेट में बल पड़ने तक मैं भी कहीं हँसती रहूंगी बस यही विचार करना हाँ अपने लिए मेरे लिए हँसते करना सुनो! जीवन का मतलब वही रहेगा जो अब है.. जो कभी था हाँ यह वही है जो हमेशा से था संसार में निरंतरता रहेगी मेरी मृत्यु के बाद तुम्हारी मृत्यु के बाद... और मेरे जाने के बाद मुझे क्यों तुम्हारे मन से दूर होना चाहिए? क्योंकि सिर्फ मैं नजरों से दूर हूं! मैं वहाँ तुम्हारा इंतजार करूँगी क्योंकि सबकी नियति वही है मैं भी वहीं रहूंगी, हाँ यहीं रहूंगी कहीं बहुत नजदीक बस उसी किनारे के आसपास बस तुम्हारे आसपास हाँ सब ठीक तो है सब ठीक ही होगा ठीक वैसे ही जैसे जीवन से पहले था जीवन के बाद रहेगा क्योंकि मृत्यु अकाट्य सत्य है ठीक हमारे प्रेम की तरह। -सुषमा तिवारी
हम तुम और कॉफी. रात का खाना बनाकर रागिनी सासु माँ के घुटनों की सिंकाई करने बैठ गई पर उसका मन तो अब भी उन कॉफी के प्यालों में अटका हुआ था। शाम को वह हांफते हुए पहुंची थी। " सॉरी! मैं लेट हो गई, ऑफिस में काम बहुत ज्यादा था।" " कभी अपने परिवार और ऑफिस के अलावा मुझे और मेरे प्यार को भी समय दे दिया करो" मुस्कराते हुए रवि ने कहा जो पिछले आधे घण्टे से मरीन ड्राइव पर उसका इंतज़ार कर रहा था। रागिनी ने साइकल पर कॉफी बेचने वाले को रुकवाया और दो कॉफी बोला तो रवि ने मना कर दिया। " मुझे पता है तुम्हें कॉफी पसंद है पर आज ये कॉफी नहीं.. सरप्राइज है तुम्हारे लिए.. आओ!" कह कर बेंच से उठ कर रवि खड़ा हो गया। " कैसा सरप्राइज ?" " आओ तो.. वहाँ !!" रवि ने रोड उस पार कॉफी शॉप की ओर इशारा किया। दरवाजे के अंदर घुसते हुए रागिनी का दिल जोड़ से धड़क रहा था, उत्साहित थी क्योंकि ये एक ख्वाब जैसा ही था पर थोड़ी असहजता भी थी क्योंकि वहाँ के माहौल में खुद को फिट नहीं बिठा पा रही थी। रवि ने उसका हाथ प्यार से पकड़ा और कोने वाली टेबल पर बिठाया। वेटर को बुला दो कैफेचिनो ऑर्डर किया। " रवि! इसकी क्या जरूरत थी.. ये तुम्हारे पॉकेट पर भारी पड़ेगा " रागिनी फुसफुसाई। " तुम्हारे ख्वाबों को भी तो इन्हीं जेबों में रखा है " रवि ने शरारती अंदाज में कहा। " जाने कितने ख्वाब सजते होंगे ना रवि! रोज ही इन कॉफी के प्यालों के साथ?" " हाँ डियर! ये तो इस कॉफी को भी नहीं पता होगा, वर्ना हम तुम और ये कॉफ़ी.. बस भागदौड़ की जिंदगी में तुमसे ढंग से मिलने का बहाना यही है " " चलो रागिनी! अभी काम बाकी है मेरा और लौटते वक्त अपने बच्चों के लिए जलेबियां भी लेनी है.. मैं चलता हूं " " हाँ रवि! मुझे भी घर जाकर मेरी सासु माँ की घुटनों की सिंकाई करनी है, तुम्हारी कॉफी और तुम्हारी बाते मुझे बस फंसा कर रख देती है।" कॉफ़ी के कप के साथ रूमानी शाम खत्म कर दोनों अपनी-अपनी राह चल दिए थे। " मम्मी! अकेले में क्यों मुस्कराते हो?" बेटे ने कहा तो रागिनी रूमानी शाम से वर्तमान में आ गई।लगा जैसे किसी ने चोरी पकड़ ली हो। " दीदी कब से आवाज़ लगा रही है.. पापा आए है, पानी दे दो " रागिनी पानी का ग्लास ले कर जाती है। मुस्कुराहट और बढ़ गई। " वाह बेटा! तुमने ही बिगाड़ रखा बच्चों को.. जलेबी लाने की क्या जरूरत थी.. वैसे ही ख़र्चे कम है क्या.. उपर से तुम्हें अपनी बहनों की काॅलेज फीस भी देनी है!" माँ ने कहा। " हम कर लेंगे माँ " रवि और रागिनी ने एक साथ कहा। अब सब उन्हें देख रहे थे पर समझ ना सके कि कॉफी की कुछ चुस्कियां जो जिंदगी से कुछ पल चुरा कर वो साथ पीते हैं, उन्हें जाने कितनी हिम्मत दे जाती है। -सुषमा तिवारी मौलिक एवं स्वरचित
फोन की घंटी लगातार बज रही थी। हाँ पर वो नहीं उठाएगी उसने सोच लिया था। जबसे प्राची को स्कुल से सस्पेंड किया है और रिश्तेदारों को पता चला है ऐसे फोन कर रहे हैं जैसे कोई पहाड़ टूट पड़ा हो। एक तो वो खुद परेशान है उस पर ये फोन कॉल्स! फोन बंद होते ही मोबाइल रिंग होने लगा। मोबाइल पर उसके बेस्ट फ्रेंड मीना का मैसेज था। "तुम फोन नहीं उठा रही हो ज्योति! पर तुमसे बस इतना कहना था कि प्लीज परेशान मत होना.. प्राची बच्ची है और भेड़ दौड़ में दौड़ने वाले ये स्कूल वाले ऐसे ही करते हैं, प्राची को कुछ नहीं हुआ है.. तुम चाहो तो किसी अच्छे चाइल्ड कौन्सिलर से मिल लो और दिमाग शांत रखो" चाइल्ड कौन्सिलर से मीटिंग फिक्स करके वो चुपचाप निकल सबकी नजरो से बचती निकल आई..उन लोगों से जो पहले से ही ताना देते थे कि आपकी बेटी नॉर्मल नहीं है। पता नहीं क्यों उसे अब तक ऐसा कभी लगा नहीं पर आज स्कूल वालों की हरक़त के बाद सबकी नजरो में गुनहगार बन गई थी। डॉक्टर के क्लिनिक पहुंच कर ज्योति अपनी बारी आने के इंतज़ार में बैठ गई। प्राची वही लगे पेंटिंग्स देखने लगी। "मम्मी! मैं एक कहानी सुनाऊँ?" प्राची उछलते हुए बोली जो कि कब से सामने टंगी पेंटिंग को देख मुस्कुरा रही थी। "बस कर अब तेरी कहानियां!" ज्योति के सब्र का बाँध टूटने ही वाला था। चाइल्ड कॉउन्सलर के यहां बैठे हुए अपनी बारी के इंतज़ार में वो साथ बैठी महिला को भी देख रही थी जिसके साथ उसका बेटा मोटा चश्मा लगाए चुपचाप किताब में आधे घण्टे से सर घुसाए बैठा था। ज्योति की आँखों से आंसू निकल आए, यही तो वो चाहती थी कि कभी प्राची भी जरूरी किताबों से प्यार करे। "वैसे क्या समस्या है आपकी?" ज्योति की आँखों में आंसू देख उसने पूछ लिया। "जी मेरी प्राची वैसे तो बहुत ही समझदार बच्ची है पर जाने कोर्स की किताबों में मन नहीं लगता..इसे तो हर एक चीज़ कहानी सुनाती है, जो मिले फिर उसे भी कहानियां सुनाने लगती है.. अब बताइए पढ़ेगी नहीं डिग्रियाँ नहीं लेगी तो क्या होगा इसका भविष्य में ?.. वैसे आपका बेटा बहुत ही सिंसीयर लग रहा है" " जी हां! किताबी ज्ञान के अलावा मेरा बेटा कुछ बात नहीं करता .. ये खुलकर कुछ बोल ही नहीं पाता "। उस महिला की बाते सुनते ही ज्योति सोच में पड़ गई। क्या होता अगर प्राची भी उससे कभी बात नहीं कर पाती, या गूंगी होती? आज उसके ज्यादा बोलने से परेशान ज्योति सिहर उठी। डॉक्टर से मिलकर लौटने के बाद ज्योति को इतना समझ आ चुका था कि प्राची बिल्कुल नॉर्मल है बस उसकी एनर्जी को सही समय, सही दिशा और थोड़ा ध्यान देना होगा। थोड़े ध्यान और दूसरी एक्टिविटी से उसका संतुलन बना रहेगा। ज्योति ने घर आकर प्राची को गले से लगा लिया। "मेरी बच्ची, बीमार तो हम है जो जिंदगी को पत्थर और मशीनों की तरह जी रहे हैं, तुम बिलकुल ठीक हो और मैं सुनुंगी तुम्हारी कहानियां" । ©सुषमा तिवारी
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