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मोहब्बत थी तो उस वक़्त रोक लेते , अब एक अरसे बाद इज़हार करने का क्या फ़ायदा , अब तो तुम्हारे बिना भी जिना सिख लिया है अब इकरार करने का क्या फ़ायदा । अब तो अपने रास्ते ही चिलककर जीलेते है अब इश्क़ को इंतक़ाम करने का क्या फ़ायदा । #kavyotsav
#kavyotsav ( इश्क़ ) किसी को ख़ुद में मिलाकर हम बनने की खवाईश न थी, पर जब से मिले हो तुम तबसे में मैं नहीं रहे गई। बहूत रोका ख़ुद को कि तुझसे कभी इश्क़ न हो पर कमबख़्त यह दिल कभी मेरे क़ाबू में था ही नहीं । मोहब्बत तो थी तुमसे पर इज़हार करने से डरते थे , और तुम भी न जाने इस इश्क़ को कभी नहीं समझते थे। सालों के रिशते को पल भर में तोड़ दिया , इश्क़ नहीं है कहकर मुझे अधूरा ही छोड़ दिया ।
#kavyotsav ( भावनाएँ ज़िंदगी के सफ़र की ) यह सफ़र यह सफ़र कुछ इस तरह शुरू हुआ , नये रास्ते , अंजान गलियाँ , अजनबी लोग और मैं | हर तरफ़ था शोर , फिर भी कुछ ख़ामोशी सी लगी , उन आवाज़ों , रास्तों और लोगों की कमी सी लगी | मेरी आँखें सब कुछ देख रही थी , इन नज़रों में शायद हर अंजान चीज़ों से परिचित होने की इच्छा थी या फिर ये भी नए शहर में कुछ पुराना सा एहसास ढूँढ रही थी | मैं अभी तक चुप थी , एक ही जगह पर खड़ी थी , सही रास्ते के इंतज़ार में या फिर आगे बढ़ने की हिम्मत ही नहीं थी | ख़ुद को सम्भाला और आगे बढ़ गई , हर एक एक क़दम के साथ मानो मैंने ख़ुद को जान लिया हो | इस रास्तों ने मुझे एक एेसे इंसान से मिलवाया जो हर समय मेरे साथ थी , मेरे साथ ही रोती, हसँती, सोती थी , मेरी मुसीबतें ही उसकी मुसिबते थी, मेरा जीवन ही उसका जीवन था, और वो इंसान थी मैं ख़ुद | इस रफ़्तार से चलने वाली दुनिया में सबसे मिले पर ख़ुद से मिलना शायद भुल गई मैं | ख़ुद से परिचित हुए तो रास्ता आसान लगा , मंज़िल दूर थी , पर अपनी शक्ति पर विश्वास हुए | इस रास्ते पर चलते चलते मैने ख़ुद से ही कितनी बातें करली , अपनी ग़लतियों से सीखा , सफलताओं पर शाबाशी दी , कुछ महत्वपूर्ण लोगों , यादों और जगह का स्मरण किया | यह रास्ते अब तक अंजान ही थे , पर शायद ख़ुद से परिचित होती गई मैं | मंज़िले कहा थी , उसका रास्ता क्या था , यह तो पता नहीं था , बस चलते रहना है इस सफ़र पर यह पता था मुझे | जो लड़की रास्ते को अंजान समझकर आगे बढ़ना ही नहीं चाहती थी , उसने अपने एक क़दम आगे बढ़ने की हिम्मत से ख़ुद को खोज लिया था | आज उसमें हिम्मत है हर रास्ते पर चलने की, यह सफ़र अभी तक अधूरा है, मंज़िलों की खोज अब तक चल रही है , पर इस सफ़र ने जो मुझे ख़ुद से परिचित करवाया वो इस सफ़र को अभी से ख़ास बना देती है | मेरा रास्ता एेसा है , जिसमें ख़ुशियाँ भी है और ग़म भी बस अंत अभी अंजान है| यह सफ़र तो चल ही रहा है , एक दिन शायद मंज़िल भी मिल जाए और मेरा यह अधूरा सफ़र पूरा हो जाए। - शुभाँगी सिंह
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