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Rupendra Raj

Rupendra Raj

@rupendratiwari19gmai


फिर से बौना अनुभव किया मैने
संकीर्ण सोच के साथ स्वयं को।
नहीं मिला पा रहीं हूँ
चाल अपनी ज़माने से।
खुलो, वो कहते हैं
संकुचन को छोड़ दो।
लांघ लो लक्ष्मण रेखा
जो तुमने घेरी है अपने गिर्द।
फिर क्या करूँ?
शामिल हो जाओ उस छदम भीड़ में
जो दोहरे जीवन जीती है।
क्या सच में?
शामिल होना ज़रूरी है?
क्या मुझे यूँ ही स्वीकारोक्ति
नहीं मिलेगी?
अंधेरा गहरा रहा है, रात की कालिमा में
त्रिशंकु सा लटका है मन।
मुझे आसमान चाहिए,
पर धरती पे पैर टिका कर।

रुपेन्द्र राज।

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# kayvotsav
राष्ट्रीय कवि प्रतियोगिता

कविता

प्रेम

      प्रेम  है एक सेतुबंध
मनुष्य का नैसर्गिकता के बीच।

रहता है स्थाई अवचेतन मे
    होता है परिभाषित
आवश्यकता के अनुरूप।
   प्रेम शब्द मे निहित
'अथाह ' अर्थ का समुद्र।

वेदना, संवेदना, चेतना ,उत्साह
दु:साह, नैरेश्य,और अंत मे वैराग्य।

जागृतावस्था मे यह 'सुंदर' शब्द
     मे निहित होता है।
सुसुप्तावस्था मे 'सत्य' से परिचय
         कराता है।

दो देहों का मिलन प्रेम नही
      है आसक्ति
दो आत्माओं का विलय प्रेम नही
      है आध्यात्म ।

प्रेम है बस इनके बीच का क्षण
  न मिलन की संभावना
और न विरह की कल्पना
   प्रेम ठहरता है केवल
      इन्ही क्षणों मे।

रुपेन्द्र राज।।

C/O श्री प्रमोद तिवारी
वॉलीबॉल ग्राऊंड के सामने
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श्याम नगर
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छत्तीसगढ़

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