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आप बस इतना समझ लीजिए जिस देश को आप कल का सुपरपावर समझ रहे है उस देश में अाज नौजवान भूख से मर रहे है। और विडंबना यह है कि ये कोई जुमला नहीं बल्कि सपनों से सजी हुई झूठ पर कसकर पड़ने वाली एक खूंखार तमाचा है।
हम मजदूर है। अब मजबूर है। ना रहा जाता अब भूख में दो वक़्त के रोटी की तलाश है। निकल पड़ा था पैदल ही सप्ताह भर पहले गांव पहुंचा तो देखा बारिश बहुत तेज है। बीमार मां बाप के संग खड़ा में देखा अपना घर तो वहीं है। बस उनमें दीवारें और छत नहीं है।।
इस वक़्त देश की जनता को हजार किलोमीटर का रास्ता पैदल चलना पढ़ रहा है, औरतों को राह चलते रास्ते में प्रसव करना पड़ रहा है। मां अपने छोटे बच्चे को , बेटे अपने बूढ़े मां गोद में उठा कर चल रहे है। ट्रक के अंदर जानवरो कि तरह इंसान घर जाने की कोशिश कर रहे है। उस वक़्त हमारे देश के सरकार दिन रात मेहनत कर बसों के कागजातों की जांच कर रहे है ताकि वह राह चलते कुचलते गिर गिराते तरपते मरते देशवासियों भी यह जान ले कि हमारा देश बदल रहा है।
#कोरोना #कॉविड_१९ चीन को पछाड़ने की इच्छाशक्ति हम भारतीयों के दिल में न जाने कब से भरा हुआ है भले ही क्षमता में हम उनसे कहीं पीछे हो। पर आज रात तक हम चीन से वाकई में आगे निकल जाएंगे। ये अलग बात है कि इस मामले में भी भारत चीन का उतराधिकार ही रहा है।
जितना मुझे समझ आया। उन्होंने कहा भाई कोरॉना कोरॉना बहुत हुआ। ये तो चलता ही रहेगा पर अब अपने काम पर लौटे। थोड़े थोड़े पैसे सब में बटेगा।
क्या यही वह स्टेज थ्री है जिसका शुरुआती दिनों में बार बार उल्लेख कर हमें डराया जाता था। कहा जाता था घर से निकलो नहीं वरना एक बार स्टेज थ्री आ गया तो सब ख़तम हो जाएगा। आजकल लोग स्टेज थ्री स्टेज थ्री इतना बोल नहीं रहे है। क्या इस शब्द का इस्तेमाल करने वाले लोग पहले और दूसरे स्टेज में ही चल बसे या उनलोगो ने भी डरना छोड़ दिया। हो सकता है शायद इसी में जीना सीख लिया।
जब चीन रफ़्तार से अपनी संख्या में इजाफा कर रहा था तो हम भारतीयों को लगता था कि ये देश तो गया। आज हम महज पांच दिन की दूरी पर है चीन को हराने में। फिर भी कुछ बेखौफ है बेपरवाह है और कुछ बेबस है बेपनाह है। हम भारतीय है।
इसिहास में पढ़ा था सिनेमा में देखा था । कुछ डॉक्यूमेंट्री भी देखा था। जब देश बट रहा था कैसे लोग पलायन कर रहे थे। भूखे पियासे नंगे पांव फटे कपड़े कैसे लोग चले जा रहे थे । माईयलो की दूरी तय कर रहे थे। आज भी देख रहा हूं । बस इतिहास के पन्नों के जगह अख़बार पढ़ लेता हूं। सिनेमा की जगह न्यूज चैनल देख लेता हूं। और डॉक्यूमेंट्री भी कहीं बन ही रहा होगा खेर वह भी देख लूंगा। वजह कुछ भी हो। इतिहास की झलकियां आज फिर भी देख रहा हूं।
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