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मास्टर सर्वशक्तिमान !!! जब से तुझे कह दिया था, कण कण में व्याप्त। जीवन में सुख हो गया था, प्रायः समाप्त।। "तुम मात पिता, हम बालक तेरे" रह गया था केवल नारा। इसलिए भूल चुके थे, प्यारा सा भाईचारा।। भूलकर तुझको, खो दी थी अपनी भी असलियत। इसलिए अब तक नहीं पा सके थे तेरी मिल्कियत।। सब जगह ढूँढा चैन औ अमन, पर कहीं नहीं पाया। दर-दर भटककर, सिर्फ मन को मैंने भरमाया।। जब बनाऊँगा तुझसे नया रिश्ता, होंगे पिता और संतान। तब कहलाऊँगा मैं भी, मास्टर सर्व शक्तिमान।। अब तक जो था मेरा, वह सब तुझको अर्पण। बनाऊँगा स्वच्छ तुझसा, अपना भी मन दर्पण।। इस धरती पर रहकर, उडूँगा बन फरिश्ता। वादा है तुझसे, निभाऊँगा यह नया रिश्ता।।
#Navratri नारी नवरूपा इच्छाओं को वो करती है, सबकी प्यार से पूरी, सहनशीलता से मिटाती है, आपसी मन की दूरी, बिन उसके रहती है, जीवन की हर बात अधूरी, गृहिणी कहलाती है, हर घर परिवार की धुरी। काम घर का हो या बाहर का, देती है तन मन धन से पूरा सहयोग। करती बचत और अथक मेहनत, छुपा लेती है अपने छोटे-मोटे रोग। बच्चें है धड़कन इनके जीवन की, पाती उनमें खुद के बचपन की झलक। पढ़ाकर उनको जान लेती हैं कुछ नया पूरी करती अपने सीखने की ललक। घर के बड़े बुजुर्गों का भी रखती है ध्यान, देती समय पर दवा और उचित खान-पान बच्चे भी खुश रहते पाकर उनके अनुभव की छाया मिलती सफलता, जहाँ हो इनके आशीर्वाद का साया। संजोकर रखती सब नए पुराने रिश्ते नाते, हर दिन है उत्सव इनका, यादगार जो बन जाते मनाती है हर तीज त्यौहार, सबके मन को जो हैं भाते रूप निखारे खुद भी अपना, झटपट सारे काम जो हो जाते। खाकर बचा खुचा और बासी, हो जाना संतुष्ट कह दिया है अब इनको अलविदा जिम ज़ुम्बा एरोबिक्स से नाता जोड़ रखती है काया अपनी निरोगी सदा। "क्या कहेंगे लोग" इस रोग से पायी अब निजात शौक भी पूरे करती, चाहे दिन हो या रात राजनीति और नयी तकनीकों की करती है बात चर्चा हो कोई भी, अब देती है सबको मात। जुड़े तार अंतर्मन से, करती प्राणायाम और योगासन मिलती इससे नयी ऊर्जा, रहता स्वस्थ तन और शांत मन। बदलते वक़्त के साथ, बदल दिया है अपना जीवन नारी अब अबला नहीं, सामना करती है सबला बन। सहन नहीं है उसको अब, मिला किसी से अपमान वो चाहे बस केवल, सच्चा प्यार और सम्मान पूजते आये हैं जिनके हम सिर्फ चित्र और मूरत खोल आँखें देख लो, अब हर नारी में उसकी सूरत।
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