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Ramvhp Nagar

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@ramvhpnagar2849


।।प्रणाम।।
"विडम्बना"
महात्मा तिलक,
गोपाल कृष्ण गोखले,
लाला लाजपतराय,
विपिनचन्द्र पाल,
महामना मदनमोहन मालवीय,
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस,
के
गौरवशाली परम्परा
की
वाहक होने का
दावा करने वाली

देश की तथाकथित सबसे पुरानी
राजनीतिक पार्टी
एक खानदान की पुश्तैनी
जागीर,
तथा उसके नेता और कार्यकर्ता
पुश्त दर पुश्त
उस खानदान के वारिसों
की विरुदावली गाने वाले
चारणों का समूह
बनकर रह गये है।

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तुम वो नही जिसे ख्वाबो मे देखा था
तुम वौ नही जिसे रब से मांगा था
तुम वौ नही जिसे हमने अपना मना था
तो तुम आई क्यो
जाब तुम्हे प्यार ही नही था
वो तुम नही कोई ओर हे
जिसे हमने अपने लिये मांगा था
।।।।।। एक अंजान रिस्ता।।।।

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उसको क्या बताये हाले दिल के
जिसने चुर किये अरमान दिल के
मुस्कुराते हे वो हमारे अस्को को देखकर
ओर हम हे की उन्हे देखर रो देते हे
इसी बहाने से उनकी हसीं जो मिल जाती हमे

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सूरज की तरह चमक भी जरुरी हे
अक्सर अंधरे मे लोग दिये जलाते हे
बुझा दिये जाते हे उन दिये को
जो पूरी रात जलकर उजाला देते हे
ओर भुला दिया जाता हे उस सूरज को
उस रात के अन्धेरे मे
जो खुद तपकर दुसरे को सुकून देता हे।।R।।

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आज फिर उसकी पलको मे वो आन्दज था
जो बी था पर वौ पहले जेसा प्यार नहि था
जी करता की उसकी नजरो मे डूब जाउ
पर उसके अस्को मे वो एतबार नही था।।R।।

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वो वक़्त ही तो हे जो मेरे साथ चलता है
लोग तो रोज बेवक्त रूठ जाते हे