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"फर्क कुछ इतने रहे उसके मेरे दरमियाँ । मै मूरत रहा सच की, वो जाल फरेब का बुनती रही ।। उसे कभी फलक पर बिठाया था हमने बड़े नाज़ से। वो कदम दर कदम नजरों से गिरती रही।। मैने खोकर खुद को उसका हो गया. . वो दौड़ मे थी. . . . . जमाने की. ! ! वो मेरी तो क्या ? ? ? कहीं का न रही"।।
सच्चा प्रेम...!! सच्चे प्रेम का रंग समुद्र के पानी की तरह नीला है समुद्र का पानी नीला क्यों है ? क्योंकि समुद्र के पानी मे असीमितता, निर्मलता और गहराई है और यह नीला रंग उसी गहराई, असीमितता और निर्मलता का प्रतीक है!! लेकिन अगर हम अंजलि मे भरकर देखें तो क्या सच मे समुद्र का पानी नीला है ? जवाब - नही फिर भी नीला दिखता है क्यों ? क्योंकि उसमे आसमान का अक्स दिखता है... जिनमे गहराई असीमितता और निर्मलता होती है वो जमीन पे रहकर भी आसमान की ऊंचाइयों को छू लिया करते हैं? हमारे प्रेम मे भी समुद्र के जैसी गहराई निर्मलता और असीमितता है इसलिए दूर से रंगीन दिखता है लेकिन जब लोग करीब से देखने और जानने की कोशिश करते हैं तो बेरंग मतलब कनफ्यूजन ? प्यार है भी या है ही नही ? अरे है बहुत है लेकिन दिखाई नही देगा क्योंकि उसको देखने और समझनेके लिये- सोच मे गहराई, मन मे निर्मलता और विश्वास मे असीमितता का होना बहुत जरुरी है...?
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