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*अच्युतं केशवं कृष्ण दामोदरं,* *राम नारायणं जानकी वल्लभं,* संपूर्ण विश्व को गीता के माध्यम से ज्ञान, कर्म, प्रेम और भक्ति का अनमोल संदेश देने वाले भगवान श्री कृष्ण के प्राकट्य दिवस श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन पर्व की आप सभी को परिवार सहित हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। डॉ. प्रणव भारती - Pranava Bharti
दिल्ली में प्रिय कुसुम मुझे अपनी काव्य की पुस्तक भेंट करते हुए।
आज का दिन हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता केवल एक दिन का उत्सव नहीं, बल्कि हर दिन की जिम्मेदारी है। स्वतंत्रता दिवस पर देश को एकजुट रखने का संकल्प लें। हम सबको एक स्वतंत्र और समृद्ध समाज की दिशा में काम करना है। *आप सबको सपरिवार स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं*🙏🙏🇮🇳🇮🇳🌹🌹
उस वीराने में जुगनुओं की चमक है जो मुझे दिखा देती है अंधेरों में राह-- मैं लक्ष्य तक पहुँचने के लिए उनकी आँखों में लेती हूँ झाँक - - - डॉ प्रणव भारती -Pranava Bharti
मैं प्रकृति देती मुस्कान तुम्हें मन भरें स्नेह से प्यार से, दुलार से न हो द्वेष सुंदर हो परिवेश जान लो मुझे पहचान लो मुझे मिलो सबसे ऐसे एक ही पिता की हों संतान जीवन एक वरदान!! डॉ प्रणव भारती
स्नेहिल सुभोर 🌷सर्वे भवंतु सुखिनः 🙏🏻
स्नेहिल भोर मित्रो =========== भोर का नाद !! ___________ सपनों की दुनिया से निकल जूझे हैं हम सब दिशाओं के आँगन में समेटे हैं नाद चहचहाहट से गोधूलि के विश्राम तक लगी सीढ़ियों पर चलते, गाते रहे हैं गुनगुनाते, मुस्कुराते पार करते रहे हैं चीरते रहे हैं वक्षस्थल वर्जनाओं के बंजर भूमि में रोपते रहे हैं अनगिनत विशालकाय वृक्ष जिन पर बने घोंसले--- राहगीरों ने ठिठककर सुखाया है ताप हम सबने बचाया है स्वयं का व्यक्तित्व धरा की सौंथी महक ने अंतर में रोपा है कबीर हम कैसे बन गए शातिर? ये दौर प्रहारों के रहे हैं आते - जाते इतिहास के पन्नों पर भरे पड़े हैं खाते नीति के नाम पर अनीति के चक्र घूमते रहे हैं सदा सुनी न हो रणभेरी न चलती देखी हो गदा मन की पाषाण भूमि बन जाती है बिहरन करने लगती है प्रश्न उलझने लगते हैं पेचीदा रास्ते जो थे सीधे - सादे हम सबके वास्ते चुप्पी मत धरो उठो, तय करो पुन: उन्हीं रास्तों को इस बार मार्ग बनाने हैं पक्के युवा सपनों की दृष्टि जमी है तुम पर, हम पर हम सब पर आओ पकड़कर हाथ बनाते हैं एक संग एक संगठित घेरा संभालेंगे उसको मिल देखो, नन्ही आँखों में खिलने लगा नया सवेरा !! स्नेहिल भोर डॉ प्रणव भारती
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विश्व की सभी महिलाओं के लिए 💖 संवेदन के तट पर-मैं (नारी ) मैं जिधर भी चल पड़ी हूँ मार्ग खिल खिल से गए हैं जाने कितने बंध मुझको पवन से खुलते लगे हैं मैं पथिक हूँ इस धरा की चल रही कितने युगों से पाँव में छाले पड़े तो क्या हुआ विचलित नहीं हूँ------ हृदय की जिजीविषा कुंदन बनी है, तप रही है श्वाँस की तपती धरा है जिसमें बाती जल रही है और मैं उजले सहर की एक उजली किरण बनकर सब अँधेरों को सिरहाने रख खड़ी मुस्का रही हूँ काल से कवलित नहीं हूँ - - - - - शेष सपने हैं तो क्या है किसके सब पूरे हुए हैं पर्वतों पर दृष्टि डालें लक्ष्य तो अब भी तने हैं चाँदनी की ओट लेकर आवरण में वे पले हैं मैं धरा की तीर्थ सी मन की परीक्षा कर रही हूँ सच कहूँ, विगलित नहीं हूँ----- डॉ.प्रणव भारती
माँ पार्वती सभी मातृशक्तियों में अपना प्रेम, नेह, आशीष बरसाएँ🙏🏻विश्व की समस्त शक्तियों को नमन,वंदन,सत्वन🙏🏻 सर्वे भवन्तु सुखिनः 🥰
https://youtube.com/watch?v=hf9sC_1KN50&si=wKQO4eYpVwXLq2wq
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