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યાદવ પાર્થ

યાદવ પાર્થ Matrubharti Verified

@parth6606
(173)

ए चौतरफा घिरी दिवरोसे पूछो,
इन गहराते अंधेरोसे पूछो,
जो मोहब्बत की किताबसे
फट गए है कागज के पन्ने,
एकबार मुकम्मल होकर टूट
जाने का गम उनसे पूछो.

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मै सादगी खो कर बैठा हु,
बस तेरा होकर बैठे हु,
नाजाने कितने सूरज ढल गए,
बस मौत के इंतज़ार मै बैठे हु,

तु दे रजामंदी अगर मेरे यार तो,
तेरे माथे पर कूम कूम लगाऊंगा,
तेरे हाथ को उमर भर थाआमुंगा,
इन कोमल पैरो मै प्रेंम की पायल पेहना उँगा,

तु दे रजामंदी अगर मेरे यार तो,
मेरे हर अहसास मैं तुझको ही चाहूंगा,
मेरे सबसे करीब तुमको ही लाऊंगा,
तुमसे की हर बात निभाऊँगा,
तेरे वादो को सबसे पहले पुरा करूँगा,

तु दे रजामंदी अगर मेरे यार तो,
तुझे तुझसे ही चुरा ले जाऊंगा,
तेरे ख्वाब मे आया करूँगा,
मै बस तुम्हे और तुम्हे ही चाहूंगा,
तु दे रजामंदी अगर मेरे यार तो,

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वो क्या कमाल लगती है,
कबूल हुई दूआ लगती है,
जैसे, वंसत की हवा लगती है,
और मेरी रातों की दवा लगती है।

बात दिलकी आँखों से निकल रही है,
और वो जबान और लहजा पूछ रही है..

मोहब्बत का सौदा बड़ा माहेंगा पड़ा ।
तन्हाई हमने रखली, आबादी उसने ।।

तुम धुन सुनो, सरगम सुनो,
चाहे जो भी कहो.
उनके चुडियो की खनक एक तरफ,
बाकी तुम जो भी कहो..

क्या कहे कुछ कहा नही जाता,
तुमसे मिले बगैर रहा नही जाता,
अब तो आलम महोब्बत में कुछ ऐसा है,
इन कातिल रातो को सहा नही जाता...

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आज कल मेने हसरतो से कीनारा कर के रख्खा है ।
अपने हिस्से का सब तेरे नाम करके रख्खा है

उनके रूठ नेका तरीका बड़ा कमाल का था,
वो आँखे चुरा लेती थी और हाथ थामा करती थी.