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Palak

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@palak542374


सिर्फ मैं ही क्यों???

मैं ही क्यों त्याग करूं तुम्हारे लिए !
तुम मेरे लिए त्याग नहीं कर सकते क्या ?
मैं ही क्यों इंतजार करूं तुम्हारा !
तुम मेरे लिए तड़प भी नहीं सकते क्या ?
मैं ही क्यों आंसू बहाऊ तुम्हारे लिए!
तुम मेरे लिए थोड़ा सा रो भी नही सकते क्या?
मैं ही क्यों समझूं तुम्हारी नाराज़गी को हर बार !
तुम मेरे दिल का हाल भी नहीं समझ सकते क्या?
मैं क्यों मांगू तुम से कुछ !
तुम खुद मुझे कुछ लाकर नहीं दे सकते क्या ?
मैं क्यों बताऊं तुम्हें अपनी पसंद-नापसंद !
तुम खुद पता नहीं लगा सकते क्या ?
मैं ही क्यों तुम्हें अपनी परेशानियां बताऊं!
तुम मुझसे अपना दुख नही बाँट सकते क्या?
मैं ही क्यों आऊँ तुमसे मिलने हर बार!
तुम मेरे घर की दहलीज़ पार भी नहीं कर सकते क्या?
मैं क्यों माँगू तुम्हें किसी इसे !
तुम मेरे घरवालों से मेरा हाथ भी नहीं माँग सकते क्या ?

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दोस्ती की अधूरी दास्तां

कुछ अजनबी आए थे मेरी जिंदगी में
उनके साथ एक अलग सा रिश्ता बनने लगा था
अपनों से ज्यादा उन पर भरोसा होने लगा था
और सब कुछ साझा होने लगा था
सुख दुख के साथी हम बन गए थे
हंसते खेलते और बहुत बकवास करते थे
जिंदगी खिली खिली रहने लगी थी
चेहरे पर अलग सी मुस्कुराहट रहने लगी थी
अब किसी दूसरे की जरूरत ना थी हमें जिंदगी में
बस फिर उनसे एक नया रिश्ता सा बनने लगा था
धीरे-धीरे हमारी करीबियां बढ़ती ही गई
और करीब आते आते हमने उस रिश्ते का नाम
दोस्ती रख दिया

फिर हमारी उस दोस्ती को किसी की नजर लग गई
और हम सब दूर-दूर रहने लगे
जिनसे हफ्ते में कई बार मुलाकात हो जाया करती थी
अब उनसे सालों भर मुलाकात ही नहीं हो पाती
मुलाकात तो दूर की बात है
हम अपनी जिंदगी में व्यस्त ही कुछ इस कदर हो गए है
की फोन पर बात भी नहीं हो पाती
बस हर समय उनकी याद सताती रहती है
अब तो महीने में एक बार बात हो जाए वह भी बहुत बड़ी बात होती है
क्योंकि अब कोई बहाना ही नहीं होता हमारे पास बात करने का
हम व्यस्त ही कुछ इस कदर हैं हमारी जिंदगी में की
अपने करीबियों से भी बात ना कर पाते हैं
बस मरते दम तक इसी बात का दुख रहेगा कि
अब अपनों से भी कुछ साझा न कर पाते हैं|

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