Quotes by Nagendra Singh Sombansi in Bitesapp read free

Nagendra Singh Sombansi

Nagendra Singh Sombansi

@nagendrasingh557gmail.com3855
(3)

"सारथी", को मातृभारती पर पढ़ें :
https://www.matrubharti.com
भारतीय भाषाओमें अनगिनत रचनाएं पढ़ें, लिखें और सुनें, बिलकुल निःशुल्क!

Read More

तर्क कहां उद्धव का काम आया ,
तर्क से गोपियां रूठीं ,
तर्क सुन सुन गरीबों की,
कि अब ये सिसकियां फूटीं ....

जमाने के दर्पण से,
मत देख अर्पण को,
उठे पीड़ा अगर सीने में,
तो सोनू सूद बन जा....

Read More

सामर्थ जनो के दोषों में भी, बजती सुंदर ताली।
और निर्बल की सचवाणी भी,लगती भद्दी गाली।।

तड़पती राधा, छोड़ जो भागा।
वहीं कहलाया ,प्रेम का आका।।

प्रेम विरह की वेदना में ,दर दर भटका देवदास।
आज तलक है जिसका,जगत उड़ता उपहास।।

Nagendra Singh sombansi

Read More

**सच्ची-बेटी* -*

तुम्हारी आंखें, अच्छी है ,
वो ये,कहकर मुझे रिझाती थी!

ये बाते झूठी थी, या सच्ची थी
पर सातवे आसमानों में
मेरे अरमानों कि बस्ती थी।।

एक दिन गाने लगी वो,इक गीत,
सुन-सुन मेरे यार, सुन-सुन मेरे मीत,

चाहती हूं मै, तुम्ही में खिलना,
तुम्ही में, फिर मुरझा जाना!
तेरे आगोस के दरिया में
बूंदों कि तरह मिल जाना!!

पर मै रौनक हूं ,किसी कुटुम्ब कि,
इकलौती मैना ,उसके वागवां कि !

बल हूं मै,किसी के ,भुजा कि,
पगड़ी का मान हूं मै,पिता कि!
लाज हूं मै, मां के,संस्कारों कि
स्वाभिमान हूं मैं ,इस धरा कि!!

उजाड़ कर अपने बबूल की कुटिया,
कैसे सजा लू ,अपनी सपनों खुशियां!

पूछना जरा खुद जमीर से अपने,
कैसे निकालोगे, तुम दिल से उन्हें,
जिन्हें मानते हो भगवान अपना !

जिस प्रणय के वरण में अपनों ,
के अशीषों की वर्षा ना होंगी,
उस गुल गुलशन में खुशियों,
के फूल बोली कैसे खिलेगे,

हां ,मुझे बेवफा मत कहना,
मेरी रूह में सामिल रहोगे,
तुम धड़कती सांसों कि तरह!

हां ,मेरी रूह में रहना पर ,
मेरे जिस्म को मत छूना,
कोई मुझे बेवफा ना कहे

तुम मेरी लाज रखना !

जैसे भी जहा भी रहना ,
यूं ही सदैव खुश रहना!

आवक रह गया मैं सुन राधा के ,
मुख से उद्धव की बोलियां !

यू ही नहीं कहलाती बेटी,देवियां
इन्हीं से सीखा होगा शिव-शंकर
विष को अमृत कि तरह,पीने की रितिया

मोहब्बत सच्ची थी,या झूठी थी।
पर हां वो अपने वालिद कि, बेटी सच्ची थी।।

Nagendra singh sombansi..✍️

Read More

गांव का हूं

गांव का हूं, गवार नहीं,आराम से हूं बेकाम नहीं,
पूर्व दिशा का सूरज हूं मै पश्चिम का अंधियार नहीं!

सिंधु सभ्यता का,वर्तमान हूं मै,
नकलचियों का पाखंड नहीं!
हैंडसम, स्मार्ट, की माला जपते,
हाफ पैंट को तुम मॉडल कहते!


जब भी कभी गांव तुम आते,
अपनी कुटिल सोच संग लाते!
छोड़ हमारी खुबियों को तुम,
कमियों की तस्वीर बनाते!

चलो गांव ,एहसास करा दू,सुंदरता की सैर करा दू
पुराने पनघट पर भी, यमुना घट सा तीर्थ करा दू,

रहनसहन है सीधा सदा,पर दिल्ली सरकार नचा दू
वर्षों से हूं मैं गांव उपेक्षी,पर सब की भूख मिटा दू

यहां रहोगे अनपढ़, असभ्य भूखे रह जाओगे,
हर दिन नए नए तुम ताने, मेरे बच्चो को मारे!
......✍️

Read More

कमल कीचड़ का है राजा, नहीं इंकार है इससे।

बने सरकार कीचड़ कि, ये नहीं स्वीकार है मुझको।