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आओ हम सब कुछ इस तरह से दीप पर्व मनायें मन से ईर्ष्या द्वेष बैर भाव का कचरा हटाएं जीवन की दीवारों पर प्यार का रंग लगाएं रिश्तों में स्नेह का घृत डालकर, आत्मीयता की लौ जगाएं तन मन को सोने चाँदी जैसा बना, हर जन समृद्धि को पाएं। अवगुणों का तिमिर मिटाकर, शुभ भावों का दीप जलाएं सदगुणों का लेप लगाकर, अपने मन को महकाएं। सहयोग के फूलों की सुन्दर सी रंगोली सजाएं सुसंस्कारों की रंग बिरंगी आतिशबाजी जलाएं मधुर बोल और सम्मान का सबको उपहार दिलाएं क्षमा का करके लेन देन, पुराना बही खाता हटाएं शुभकामनाओं का भोग लगाकर, सच्चा नूतन वर्ष मनाएं नयी सोच और व्यवहार से, जीवन में खुशियां लाएं दिलखुश मिठाई बाँटकर भाईचारे का तिलक लगाएं ऊँच-नीच का भेद मिटाकर, एक सूत्र में सब बंध जाएं। वर्ष में केवल पाँच दिन का अब इंतजार मिटाएं आओ कुछ इस तरह हर दिन अब दीप पर्व मनाएं।
पिछला एक बरस कुछ गुजरा ऐसे सबने खोये कई स्वजन और परिजन जैसे मृत्यु है निश्चित ये तो सब जानते थे वैसे फिर भी, मन नहीं मानता कि ये हुआ कैसे। अब ना रही किसी के प्रति कोई भी कड़वाहट घर कर गयी अपनों को ना देख पाने की घबराहट खत्म हो गयी अब सारी ऊपरी बनावट ना रही मन में कोई भी पुरानी गिरावट। लौट के ना आएंगे कभी फिर वही भूल गए हम सब कही अनकही पाने को अब ना कोई इच्छा रही सोच को मिल गयी है एक दिशा सही अब पहले जैसा कुछ नहीं, कुछ नहीं।
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हाँ, मैंने ही आशीर्वाद दिया था तुझे ऊँचाइयों को छूने का, आसमान में उड़ने का, पर शायद भूल गया था कि हर काय पो चे के बाद पतंग कोई छत तो ढूँढ़ती है। उस छत का पता देना भूल गया था। मिले सब कुछ तुझे, जो तेरी चाहत हो तू खुश भी रहे, कहना शायद भूल गया था। जो देखता तू अब, तो जान पाता कितना बड़ा काम कर गया! जिसके सपने ही होते हैं बस, वो शोहरत अपने नाम कर गया। जिया जब तक तू, जिया जिन्दादिली से उम्र लम्बी ना सही ज़िन्दगी यादगार कर गया। मलाल रहेगा ताउम्र तेरे चाहने वालों को ऐसी अनसुलझी पहेली जो बन गया। पूछता हूँ सवाल खुद से अब कि तेरे रोने से ही तेरी भूख का अंदाजा लगाते थे क्यों तेरी हंसी में छुपा दर्द नहीं समझ पाए बचपन के हर झगड़े को सुलझाते - सुलझाते तेरा खुद से लड़ना क्यों नहीं देख पाए नींद में होती हलचल देख, थपकी देकर सुलाया था, क्यों तू चिरनिद्रा में सो गया? छोटी सी चोट पर माँ को पुकारता था ना ! आखिरी आह पर क्यों तू चुप हो गया ? तेरी हर बात को समझने वाले से "आप कुछ नहीं समझते" का सफर कब तय हो गया ? अब ढलती शाम में लौटते देखता हूँ जब पंछियों को उनके घरौंदों में तो बस दिल कहता है - खो ना जाना बनकर तू ईशान, सरफ़राज़, व्योमकेश या मैनी छिछोरे बन या बन तू धोनी तेरे घर का पता आज भी वही है जहाँ रहता है "सुशांत"। लौट आना तू चाहे चहकते हुए या चाहे बहकते हुए बस कभी देखना ना पड़े मेरे बच्चे! तुझे लटकते हुए।
Happy Friendship Day..
People can have different perspectives. It doesn't mean one is wrong and another one is right.
Sometimes real and alive people could be more scary than a ghost. #Ghost
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