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मन तुलसी का दास हो वृंदावन हो धाम साँस साँस राधा बसे रोम रोम में श्याम
बहुत गुरूर से झेली थी सख्तियाँ हमने न अपने जख्म गिने थे न पट्टियां हमने ये किसने ताजा हवाओं के पर कुतर डाले बड़ी उम्मीद से खोली थी खिड़कियाँ हमने
क्या गुनाह किया मैंने ये बता दो मुझे न करूं सकूं तुम्हें याद ऐसी वजह दो मुझे तुम्हारी खामोशी से मर रहा मैं पल पल ले लूं मैं आखिरी साँस ऐसी सजा दो मुझे
बिना दस्तक, बिना आहट, तेरी दहलीज आएगा ये पहला प्यार है, ये जब धीरे से खटखटाएगा इसे आने देना तुम, कदमबोसी भी करना तुम ये पागल सा मुसाफिर है, न जाने फिर कब आएगा
खाकर ठोकर ज़माने की जो फिर लौटा मयखाने में मुझे देख के मेरे ग़म बोले बड़ी देर लगा दी आने में
कैसे दूर करूं ये उदासी बता दे कोई! लगा के सीने से काश रुला दे कोई! 💔
ऐ घटा! जरा सा थम के बरस इतना न बरस कि वो आ न सकें वो आ जाएं तो जम के बरस फिर इतना बरस कि वो जा न सकें .. ..
बैठ कर घुटनों के बल मैं इज़हार-ए-इश्क कर जाऊंगा कर लेना इसे स्वीकार तुम जीवन भर साथ रह जाऊंगा
सात समंदर पार चलेंगे, ............ मैं और मेरा ख्वाब कभी आँखों के रोशनदानों से, ............. हमें देखना आप कभी ।।
? प्रबल प्रेम के पाले पड़ कर,प्रभु को नियम बदलते देखा . अपना मान भले टल जाए ,भक्त का मान न टालते देखा .. जिनकी केवल कृपादृष्टि से , सकल विश्व को पलते देखा . उसको गोकुल में माखन पर , सौ-सौ बार मचलते देखा .. जिसके चरण कमल कमला के,करतल से न निकलते देखा . उसको ब्रज की कुंज गलिन मे, कंटक पथ पर चलते देखा .. जिसका ध्यान विरंचि शंभु, सनकादिक से न सम्भलते देखा. उसको ग्वाल सखा मंडल में , लेकर गेंद उछलते देखा .. जिसकी वक्र भृकुटि के डर से, सागर सप्त उछलते देखा . उसकी माँ यशोदा के डर से . अश्रु बिदुं दृग ढलते देखा.. . . ...जय .'.श्री.'. राधेकृष्णा .. राधे-राधे
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