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@mamonboro412216


वो जो मेरा कभी था ही नहीं
मैं चाहती थी उसे…
पूरे दिल से, पूरे यकीन से।

सीधा ना कह सका वो,
पर किसी और से कहलवाया
जैसे मेरा दिल कोई कागज़ हो
जो यूँ ही किसी के हाथ में थमा दिया।

मैं टूटी… मगर कुछ कहा नहीं,
बस आँसू चुपचाप गालों से फिसलते रहे।
उसकी बेरुख़ी ने
मेरे अंदर की हर उम्मीद को जला दिया।
फिर एक दिन,
उससे दूर जाने के लिए,
मैं किसी और की दुल्हन बन गई।

न चाह थी, न प्यार था,
बस एक समझौता था…
अपने आप से, समाज से —
और उस अधूरे अफ़साने से।

पर आज भी जब
उसका नाम दिल में दस्तक देता है,
आँखें भर आती हैं,
और मैं खुद से पूछती हूँ —
"क्यों अब भी वो याद आता है,
जब वो कभी मेरा था ही नहीं?"
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गुरु की गरिमा
कभी जिन्हें भगवान कहा जाता था,
आज वही शिक्षक सवालों में घिर जाता है।
जिस हाथ में चॉक हुआ करता था,
आज वहाँ अपमान का काँटा चुभ जाता है।

वो जो सुबह की पहली घंटी के साथ
पढ़ाने को सबसे पहले पहुँचता है,
आज बच्चों की छोटी-सी शिकायत पर
‘आप कैसे बोल सकते हैं?’ सुनता है।

डाँटना तो अब गुनाह हो गया है,
समझाना भी अपराध।
अब शिक्षक का हर शब्द
होता है रिकॉर्ड में याद।

जहाँ कभी "गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु" गाया जाता था,
आज "फीस दी है हमने ,हिम्मत कैसी हुई आपकी" सुनाया जाता है।
बच्चे कहते हैं — ‘हमें हक है बोलने का’,
शिक्षक सोचता है — क्या मुझे हक है सिखाने का?

कक्षा में अनुशासन की बात करे तो
"मेंटल टॉर्चर" का नाम दे दिया जाता है,
और अगर चुपचाप पढ़ा दे तो
"इंटरेस्ट नहीं है" कह दिया जाता है।

कभी शिक्षक के पाँव छूकर
विद्या का वरदान लिया जाता था,
अब सोशल मीडिया पर
उसी की शिकायत का स्क्रीनशॉट डाला जाता है।

माँ-बाप कहते थे —
“गुरु की डाँट भी आशीर्वाद होती है”,
आज वही कहते हैं —
“बच्चा परेशान है, क्लास बदल दीजिए।”

पर ये शिक्षक आज भी चुप है,
उसके पास कोई मंच नहीं,
ना वो लड़ना जानता है,
ना शिकायत लिखना सीख पाया है।

फिर भी हर सुबह वो आता है,
चुपचाप बोर्ड पर लिखता है,
क्योंकि उसे पता है —
जिस दिन वो रुक गया, उस दिन पीढ़ियाँ रुक जाएंगी

मत समझो उसे कमजोर, जो कुछ नहीं कहता,
वो शिक्षक है… अपमान पीकर भी राष्ट्र गढ़ता।
अगर आज भी बचानी है शिक्षा की गरिमा,
तो लौटाओ ‘गुरु’ को उसका खोया सम्मान… उसकी असली महिमा।

“गुरु अगर डरकर चुप हो जाए,
तो समाज अनपढ़ नहीं… अंधा हो जाएगा।”

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