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मनस्वी का आप सभी को प्रणाम। आंगन में खिले गुलाब को एक शाम एकटक निहारते हुए में न जाने क्या गुनगुना रही थी. . . पता ही नहीं चला कैसे जा उठ खड़ी हुए उसके पास.. मानो जैसे कोई आलौकित आकर्षण पास खींच रहा हो . . गुलाब की सुहानी पत्तियां जैसे मुझे कुछ कह रही . . वे मुझे देख रही थीं या में उन्हें क्या पता ? ? पर अचानक से वो फुल बिखर गया . . मेरे समझ में कुछ आए उससे पहले वो ओझल हुआ . . अरे ये मेने क्या किया? मेने तो बस उसे सहसा छू लिया था . . और देखो वो बिखर गया. . . उसकी याद कहो या माफ़ी . . . मुलाकात कहो या बिछड़न . . . एक कविता उस बिखरे गुलाब के नाम . . . . # # # # # # # # # # # # # # # " बिखरा गुलाब " एक सूरज जाता हुआ, रोशनी दिए जा रहा था , दूजा चांद उसे देख केसा खिलखिला रहा था । कोई चित्र की सुंदर भात सी, पत्तियां सिंहासन सजाएं बैठी थी, मेरे ही आंगन में कैसे इतराए बैठी थी । पूरी सांझ में एक टक उसे निहारती कभी कभी, पास जाकर पूछती, कुछतो कहो ए प्रिय सखी। लालच तो देखो मेरी हुए न मुझसे परे, पास जाकर में उसके उठ हुए खड़े। उलझन में मेरी मेने उसे कुछ छू लिया, की, अचानक पत्तीओ का वो महल बिखर गया। अफसोस भरी मेरी आंखे कुछ सजल सी हो गई, लगा जैसे उनकी सान भरी दुनिया बिखर गई। अब पत्तीओ ने मुझे भी नज़र फेरकर देख लिया, फिर पवन संग खुदको यहां वहा बिखर दिया। मनस्वी।
वह लिखती बहुत है खुद ही खुद को सवारती बहुत है... वह एक ना समझ सी लड़की दूसरों को समझती बहुत है ...
कुछ इस तरह से लिखना एक माफी नामा हमारे नाम प्रारंभ के दो लफ्ज़ खैर झूठ ही लिख देना.. शिकायतों से न डरना, फिर मुंह फेर लेना.. फिर धीरे से गुनाहों की कबूलात करते हुए, उलझे अल्फाजों को सीधे ही लिख देना.. एक एक कर समझाना रुसवाई की सारी वजह, आखरी हर निष्कर्ष भी खुद ही कर लेना.. हम तो नही कहेंगे फिर भी अगर तुम चाहो, मुकम्मल सिर्फ एक दिन फिर से हमारा लिख देना.. _मनस्वी
बिना पंखों का वो हसीन सफ़र मेरे सपनों का, आंखे खुलतेही कमबख्त "जमीनदोस्त" हो गया।। - मनस्वी।
શબ્દોની ગોઠવણ કરું, કે ગોઠવાયેલ શબ્દો બસ એમ જ કહી દવ... પાર - અપાર દર્શક જેટલો ફર્ક હશે એ બન્ને માં... -Dipti
मिले कभी तो ये फर्क हमे बता देना, पता ही नही चल रहा, जिंदगी जी रहे है ? की फर्ज निभा रहे है 🤔 -Dipti
ऐसा कोई कहा जिसका कभी दिल ना टूटा, जरा गौर से देखो हर कोने में " टुकड़े " बिखरे पड़े है। -Dipti
એક વ્યકિતએ ભીડ ભેગી કરી અને "આગેવાન" કહેવાયો... બીજો રસ્તાનાં રોડા હટાવતો આગળ વધ્યો ને જુઓ આજે "નાયક" બની ગયો... - ભેદ -Dipti
એક વૃક્ષ બહારના વાતાવરણ, પરિસ્થિતિ, કે પરિવર્તનનાં આધારે બદલાવ કરે ... પરંતુ તેની મૂળ પ્રકૃતિ તો તેના બીજ આધરે જ રહેશે.. - કટાક્ષ -Dipti
પરિસ્થિતિ સાથે જેટલા જલ્દી અનુકૂળ થઈ જઈએ , એટલા જ જલ્દી સંઘર્ષ પણ ઓછો થઈ જાય છે. -Dipti
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