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जिस शहर में हम अपनी मोहब्बत हार आये। उस शहर को भी अगर जीत ले,तो भी हम क्या जीत लगे।। प्रवीण के सेन
मैं आप बीती लिखता हूं,कहा कुछ सोच के लिखता हूं। मुझें नहीं मालूम शब्दों की गहराई का,मैं बस अपनों के दिये ग़म लिखता हूं।। प्रवीण के सेन
मेरे ख़्वाब बिखर रहे हैं। वैसे ही जैसे टूटा हुआ आईना।। प्रवीण के सेन
इसे अपनी लत न लगा,फिर ये रह न पाएगा। मेरे दिल अभी नादान हैं,फिर ये संभल न पायेगा।। प्रवीण के सेन
न जाने कब,कौन,कहा साथ छोड़ दे,क्या भरोसा न जाने कब ,कौन,कहा तन्हा छोड़ दे,क्या भरोसा इस दौर में तो साँसों पर भी भरोसा न रहा। प्रवीण के सेन
लग के गले जो सुकूँ, तुझसे मिला वैसा सुकूँ फिर कही न मिला।। प्रवीण के सेन
ग़ुलाब लिए बैठा हु हाथों में,मगर किन हाथों को ये ग़ुलाब दूं। कोई चाहता ही नहीं मुझें ,तो कैसे किसी को ग़ुलाब दूं।।। प्रवीण के सेन
किन गलियों में,किन राहों में खोए हो। मुझें भूलकर किन की यादों में खोए हो।। प्रवीण के सेन
इतना भरोसा न कर,न जाने कितना साथ निभा पाउ दो-चार क़दम कि बात औऱ हैं,शायद ज़िंदगी भर का साथ निभा न पाउ।। तेरी ज़िन्दगी अभी जवान हैं,औऱ मेरी साँसों का अब कोई भरोसा न रहा। शायद इस प्यार की राह में, मैं ज़िंदगी भर साथ निभा न पाउ दो-चार क़दम कि बात औऱ हैं,शायद ज़िंदगी भर का साथ निभा न पाउ।। इतना भरोसा न कर,न जाने कितना साथ निभा पाउ।। प्रवीण के सेन
फिर वैसी कभी मुलाक़ात न हुई फिर उनसे कभी मोहब्बत पे बात न हुई।। बैठें रहे फिर दोनों अपने -अपने किनारें बीच का वो दरिया फिर कभी पार न हुआ।। प्रवीण के सेन
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