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◆◆क्यों ना कुछ गल्तियाँ माँफ कर दे हम◆◆ क्यों ना कुछ गल्तियाँ माँफ कर दे हम दिलों से कुछ गिले साफ कर दे हम । जो चला गया उसे जाने दें, उसे जाना पडा़ ; बस मान लें हम । क्यों ना कुछ शिकवे भुला दे हम कुछ दर्द चुरा कर कुछ खुशी बाँट ले हम । धोखा उसकी फितरत नही मजबूरी रही होगी, उसने सीखा नहीं निभाना; ये मान ले हम । कुछ वक्त पास बिठाकर उसे क्यों ना उसकी भी शिकायतें सुन ले हम । थोड़ी मान लें गल्तियाँ ,थोड़ा समझा भी दें, माँफ कर दे इस इंसान को ;भगवान नहीं है हम ! क्यों ना कुछ बातें भुला दे हम अच्छी यादें बना ले फिरसे,सारे आँसू भुला दे हम । कितना छोटा है दुनिया का सफर, चलो ना चलते हैं ; इसे हँस कर बिता ले हम । क्यों ना कुछ गल्तियाँ माँफ कर दे हम दिलों से कुछ गिले साफ कर दे हम । जो लौट कर नहीं आया वो वक्त था, क्यों ना नई खुशी माँग ले; बाँहे फैला कर उसे अपना ले हम ।
माँ ... ये शब्द ना जाने कबसे , केवल शब्द होने का किरदार भूल चुका है । ये ममता है ,यही ब्राम्हण है रोते बिलखते दिल का सुकून हो चुका है । एक दिन में नही समा सकती शुक्रगुजारी किसी भी माँ की , ये दिन तो यूँही एक बहाना हो चुका है । ख़ुदा तो खुद भी कम था अपने बच्चों की हिफाज़त के लिए, ओहदा माँ का उससे ऊँचा हो चुका है । ख़ुशबू सा बसता है आशीर्वाद मेरे सर पे माँ की दुआ ऐसा इत्र हो चुका है । ये शब्द ना जाने कबसे सिर्फ शब्द होने का किरदार भूल चुका है । -Khushboo
Escape Part 2 हम-साए की झलक तुझमें , तेरे पास बैठ कर ढूंढते थे । तेरे हाथों में हाथ रख कर भी तेरा साथ ढूंढते थे । अब महसूस नहीं होती मुझको मेरे रास्तों के विराम ; किसी मंज़िल की । चखा है जबसे खुद की एहमियत का स्वाद , शराबी सा लुफ्त यूँ शायर बने उठा रहे है ।
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