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Khushboo Kumari

Khushboo Kumari

@kkbuxar01gmail.com4615


◆◆क्यों ना कुछ गल्तियाँ माँफ कर दे हम◆◆

क्यों ना कुछ गल्तियाँ माँफ कर दे हम
दिलों से कुछ गिले साफ कर दे हम ।
जो चला गया उसे जाने दें,
उसे जाना पडा़ ; बस मान लें हम ।

क्यों ना कुछ शिकवे भुला दे हम
कुछ दर्द चुरा कर कुछ खुशी बाँट ले हम ।
धोखा उसकी फितरत नही मजबूरी रही होगी,
उसने सीखा नहीं निभाना; ये मान ले हम ।

कुछ वक्त पास बिठाकर उसे
क्यों ना उसकी भी शिकायतें सुन ले हम ।
थोड़ी मान लें गल्तियाँ ,थोड़ा समझा भी दें,
माँफ कर दे इस इंसान को ;भगवान नहीं है हम !

क्यों ना कुछ बातें भुला दे हम
अच्छी यादें बना ले फिरसे,सारे आँसू भुला दे हम ।
कितना छोटा है दुनिया का सफर,
चलो ना चलते हैं ; इसे हँस कर बिता ले हम ।

क्यों ना कुछ गल्तियाँ माँफ कर दे हम
दिलों से कुछ गिले साफ कर दे हम ।
जो लौट कर नहीं आया वो वक्त था,
क्यों ना नई खुशी माँग ले; बाँहे फैला कर उसे अपना ले हम ।

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माँ ...
ये शब्द ना जाने कबसे ,
केवल शब्द होने का किरदार भूल चुका है ।

ये ममता है ,यही ब्राम्हण है
रोते बिलखते दिल का सुकून हो चुका है ।

एक दिन में नही समा सकती
शुक्रगुजारी किसी भी माँ की ,
ये दिन तो यूँही एक
बहाना हो चुका है ।

ख़ुदा तो खुद भी कम था
अपने बच्चों की हिफाज़त के लिए,
ओहदा माँ का उससे ऊँचा हो चुका है ।

ख़ुशबू सा बसता है आशीर्वाद मेरे सर पे
माँ की दुआ ऐसा इत्र हो चुका है ।

ये शब्द ना जाने कबसे
सिर्फ शब्द होने का किरदार भूल चुका है ।
-Khushboo

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Escape
Part 2

हम-साए की झलक तुझमें ,
तेरे पास बैठ कर ढूंढते थे ।

तेरे हाथों में हाथ रख कर भी
तेरा साथ ढूंढते थे ।

अब महसूस नहीं होती मुझको
मेरे रास्तों के विराम ;
किसी मंज़िल की ।

चखा है जबसे खुद की एहमियत का स्वाद ,
शराबी सा लुफ्त यूँ शायर बने उठा रहे है ।

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