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हालत कुछ ऐसी हे की बया नही हो रही, न कोई गम है न कोई आनंद है, फिर भी महसूस हो रहा कुछ कमी सी है। पता नही किस कश्मकश में उलझे है, क्यू रोए उस पिद्दी सी चीज के लिए, जो आखिर में तो व्यर्थ ही है। कभी जो झूमकर खो जाना चाहा, तो कुछ कमी सी उभर जाती, कहती मुझे पहले कुछ हासिल तो करले। टूटना था तो टूट नही पाए, जुड़ना था पर जुड नही पाए, आखरी सास तक समझ नही पाए। की हासिल करे भी तो क्या करे, क्यू व्यर्थ में दर्द झेले ढोए, अंत में कुछ भी नही है। जानते है की बैठना है शांति से, पर कर न पाए, जानते हो क्यू? बंधे हुए थे बेमतलब की जिम्मेदारियों से। कोई कहता की मत सोचो ज्यादा, पर कैसे कही जाए वो बात उन्हें की, बिना मंथन के अमृत कहा। ©Kalpesh Jayswal (7th April 2021)
तो हिटलर ने गैस चैंबर बनाए। एक-एक चैंबर में पांच-पांच हजार लोगों को इकट्ठा खड़ा करके बिजली का बटन दबाकर एकदम वाष्पीभूत किया जा सकता है। बस पांच हजार लोग खड़े किए, बटन दबा, वे गए। एकदम गए, इसके बाद हॉल खाली। वे गैस बन गए। इतनी तेज चारों तरफ से बिजली गई कि वे गैस हो गए। न उनकी कब्र बनानी पड़ी, न उनको कहीं मारकर खून गिराना पड़ा। उसने बिल्कुल नई तरकीब निकाली, गैस चैंबर। जिसमें आदमी को खड़ा करो, बिजली की गर्मी तेज करो, एकदम वाष्पीभूत हो जाए, एकदम हवा हो जाए, बात खतम हो गई। उस आदमी का फिर नामोल्लेख भी खोजना मुश्किल है, हड्डी खोजना मुश्किल है, उस आदमी की चमड़ी खोजना मुश्किल है। वह गया। पहली दफा हिटलर ने, पहली दफा हिटलर ने इस तरह आदमी उड़ाए जैसे पानी को गर्म करके भाप बनाया जाता है। पानी कहां गया, पता लगाना मुश्किल है। ऐसा खो गया आदमी। ऐसे गैस चैंबर बनाकर उसने एक करोड़ आदमियों को अंदाजन गैस चैंबर में उड़ा दिया। (# कही पढ़ा हुआ।)
मंदिरों में जाना तो व्यर्थ है, हटाने की कोशिश भी उतनी ही व्यर्थ है। जिनमें भगवान है ही नहीं, उनको हटाने की झंझट में भी किसी को नहीं पड़ना चाहिए। वे बेचारे जहां हैं, हैं। उन्हें हटाने का क्या सवाल है? और अक्सर यह दिक्कत होती है। जैसे कि मोहम्मद ने लोगों से कहा कि मूर्ति में परमात्मा नहीं है। तो मुसलमानों ने सोचा कि मूर्तियों को मिटा डालना चाहिए। और तब एक बड़े मजे का काम शुरू हुआ दुनिया में--एक तरफ मूर्ति को बनाने वाले पागल हैं और दूसरी तरफ मूर्ति को मिटाने वाले पागलों की जमात खड़ी हो गई। अब मूर्ति को बनाने वाला मूर्ति को बनाने में परेशान है और मूर्ति को मिटाने वाला दिन-रात इस उधेड़बुन में लगा है कि मूर्ति को कैसे मिटा दे।अब कोई पूछे कि मोहम्मद ने यह कब कहा था कि मूर्ति के तोड़ देने में भगवान है? मूर्ति में न होगा; लेकिन मूर्ति के तोड़ देने में है, यह किसने कहा?और अगर मूर्ति के तोड़ देने में भगवान है तो फिर मूर्ति के होने में भी क्या कठिनाई है? उसमें भी भगवान हो सकता है। अगर न होगा, तो तोड़ने में कैसे हो जाएगा? #कहीं पढ़ा हुआ।
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