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आवाज़ एक आवाज़ थी वो कभी पुकारती , कभी चीखती, कभी कहराती , कभी सुबकती, इधर उधर भागती, चिल्लाती, जबरन गला अचानक घोटा किसने ? किसने हवस का बारूद भरा उसमें?, किसने गिराया उसपर खूनी गाज़, पूछ रही थी सबसे वही आवाज़ , जिस्म छलनी कर , होकर तितर -बितर, वह दर्द कई दिलों में गई थी ठहर। हां , एक और आवाज़, भागता हुआ हांफता हुआ, ममता को पुकारता हुआ, चीख रहा था, हर मार पर, याह अल्लाह पुकार पुकार कर, कहीं से आई नफरती ज़ंजीर ? जड़ दिया बांध खंभ में ढेर कर, दिया उन्होंने अज़ान को भी चीर ? गुनाह सिर्फ इतना था उसका, बच्चा नहीं था वह श्री राम का । बच्चा नहीं था वह…….………..! एक और आवाज़ सुनो, मृत चालीस सैनिकों को गिनो, धमाकों में लहराता था तिरंगा, नफरती ज़हर का था दंगा, क्या कश्मीर, क्या हों कन्या, पलटता इतिहास का था पन्ना, हिम से कन्या साजिश की थी गंगा गांव-गांव में हो रही थी अब चर्चा चर्चा खुरपी, हल , कुदाल की नहीं थी बम-धमाके तलवार या बरछा। देश तरक्की की ओर बढ़ रहा, या आवाजों में धीरे धीरे मिट रहा, मिट रही है, सरस्वती की वीणा, जी रहा इंसान मानवता के बिना, होड़ विकास की पश्चिम से तो आई है, कथा हमने भी चीर हरण की दोहराई है, दोस्तों, महाभारत अब तक नहीं है थमा, मत भूलो जीवित है, श्रापित अश्वथामा, गली गली आवाज़ घंटी की या अज़ान है, मौन भगवान तो खुदा भी यहां बेजुबान है।
कलम की आवाज़ कुछ लिख सको तो लिख जाओ चुप्पी की बड़ियों में बंधकर ही सही खामोशी की तलवार बनकर बढ़ जाओ जुल्मों का सर कलम कर जाओ आज हुक्म आया है जुबां काट देने का अब वक्त है , अल्फाजों में मिट जाने का लिख डालो, किसानों की बूढ़ी फरियाद पर लिख डालो, देश निकाले की बुनियाद पर इस कलम से बुलंद हुंकार भरकर सही इस युद्ध में रक्त नहीं, स्याही की धारा बही लिखो, भिड़ते युवा रोजगारों की कतार पर लिखो लौटते मजदूरों के पैरों के छालों पर यह युद्ध है, परखज्जों में उड़ता सैनिकों का यह युद्ध है, बिलखता शहीदों के करीबी का वैसे तो यहां हर इंसा चल रहा तन्हा- तन्हा पर एक हों बह रही उन लाशों का कारवां कुछ लिख सको तो बेझिझक लिख जाओ बादशाह का ज़ुल्म तरीखवार कर जाओ करिश्मा कलम का, तलवार बन,दिखा जाओ
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