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Jasleen Kaur

Jasleen Kaur

@jasleenkaur4536


हमारी कहानी बदल गई किन्तु, खौफ नहीं बदला।


-Jasleen Kaur

अकेलापन


आज डूब गया है वो चांद जो कभी लाखो को रोशनी देता था।
अंधकार भरी हो गई है पृथ्वी फिर एक बार जो कभी उजाले से चमकती थी।

खुद से ही लड़ता हुआ।

दुनिया के सामने खुद को साबित करता हुआ।
ना जाने कितनी मुश्किलो से अकेला ही जुझता हुआ ।
ना जाने क्यों आज ख़ामोश हो गया है इस दफा।
क्या चाहता था वो सबसे ?
प्रेम !

पर किया उसको हम प्रेम देने लायक थे?

आज वो नहीं हम हारे है।
आज वो नहीं हम लोगो में से इंसानियत ने अपना दम तोड़ा है।
अरे लज्जा करो निर्लज्ज प्राणियों।
तुमने आज खुद को ऊंचा दिखाने के लिए एक मासूम का डुबोया है।
बेशक उसकी मौत का ज़िम्मा तुम अवसाद को दो।
किन्तु!
यह अवसाद भी तुम लोगो ने ही दिया है।

कहने को तो मानती हूं । में, कि करी है उसने आत्महत्या ।

किन्तु हर आत्महत्या के पीछे होता है एक हत्यारा ।

कोई खुद से नहीं देता अपने जीवन की बलि ।

कुछ होते उससे जलने वाले जो कर देते है इस क़दर मजबूर कि वह व्यक्ति स्वयं ही अपने प्राण त्याग देता है।

उसके बाद उसी की मौत के हत्यारे बनाते है दुनिया के सामने उसकी मौत का शोक।

अरे शर्म करो तुच्छ प्राणियों ।

आज तुमने उसके साथ ऐसा क्या स्मरण रहे इतिहास अपने आप को हमेशा दोहराता है ।

जब रावण को उसकी गलती का दण्ड मिला तो तुम एक मामुली से मनुष्य ही हो।

और ,अब क्या शोक मनाते हो उसके जाने का

कभी जीते जी कभी उसका हाल पूछा है?
दूब गया आखिर वो चांद जो लाखो को रोशनी देता था ।
करता भी क्या आखिर अकेला मुश्किलों से लड़ता था ।

चांद को भी दुनिया तब तक पूजती है जब वे भी पूरा होता है।
जैसे ही उसके आगे बादल चाहते है उससे भी अपशकुनी मान लिया जाता है।
वह तो फिर भी व्यक्ति था।
आखिर क्यों किया उसे इस कदर मजबूर जो अपनी मां के जाने का दुख तो सह गया ।
लेकिन लोगो द्वारा मिलती घृणा ने उसे भीतर तक मार दिया।
कहने को तो आज भी हम कह दे की कितना भला व्यक्ति था।
पर तब क्यों नहीं कहा जब में ज़िंदा था।
वह भी क्या करता बेचारा इस दुनिया के काले साए से अंजान था।
खुद की तरह दूसरो को भी अपना शुभचिंतक मानता था।
लोगो को तो उसने सहारा दिया ।
पर उस बेचारे से कोई यह भी पूछने वाला नहीं था कि कैसे हो भाई?
अब करता भी क्या ?
दूर से जिस दुनिया को वे स्वर्ग समझता था ।
नहीं जानता था वह भी उससे जीते जी नर्क का आभास करा देगी।
वह चांद खुद नहीं डुबा
उससे भी डुबाया गया था।


धन्यवाद

-Jasleen Kaur

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कभी कभी कुछ समझने के लिए शब्दों कि आवयश्कता नहीं होती , सामने वाले के भाव ही सब कुछ कह देते है।



-Jasleen Kaur

प्रेम के आखिरी पड़ाव पर हम खुद से रूबरू होते है।



-Jasleen Kaur

उसके एक एक लम्हें की हिफ़ाज़त करना ए खुदा,
मासूम सा चेहरा हैं, उदास हो, अच्छा नहीं लगता।



-Jasleen Kaur

आकार

हमेशा एक बात याद रखिए।।
जीवन में कभी किसी के आकार पर मत जाइए।
और कभी भी
स्वयं के छोटे होने पर गलानि मत कीजिए ।
क्यूंकि छोटा अस्तित्व समय आने पर बड़े से बड़े अस्तित्व को समाप्त कर सकता है।
इसीलिए अपने से बड़ों के समक्ष कभी स्वंम को नीचा मत समझिए ।
और अपने से दुर्बलों का कभी अपमान मत कीजिए ।
सब जैसे है वैसे सुंदर है ।
ईश्वर की इस रचना का सम्मान करना सीखिए ।


धन्यवाद

-Jasleen Kaur

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