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Arman Habib

Arman Habib

@islampuriarmangmail.com090228


किसी 'अमल के हिसाब जैसे
तुझे मैं देखूँ जवाब जैसे

शबाब तेरी ये हुस्न-ए-दिल में
छलक पड़ा है शराब जैसे

यूँ ख़ूबसूरत हँसी है तेरी
खिले चमन के गुलाब जैसे

हैं मुझमें यूँ तो हज़ार बातें
मगर हूँ चुप मैं किताब जैसे

जो सुब्ह बिस्तर से मैं उठा तो
है देखा माँ को सवाब जैसे

रक़ीब से हूँ बहुत परेशाँ
गले लगा है अज़ाब जैसे

ये अब जो 'अरमान' मैं लिखा हूँ
मगर था पहले ये ख़्वाब जैसे

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तैश से तेरे डर जाऊँगा इससे ज़ियादा क्या होगा
फिर मैं हद से गुज़र जाऊँगा इससे ज़ियादा क्या होगा

झील या दरिया या सागर भी पड़ने लगेंगे कम जब तो
आँख में तेरी उतर जाऊँगा इससे ज़ियादा क्या होगा

सदियों से इक चाँद के ख़ातिर जगता हूँ मैं रातों में
तारों सा मैं बिखर जाऊँगा इससे ज़ियादा क्या होगा

दिल में तिरी तस्वीर लिए अब पागल सा मैं फिरता हूँ
प्रेम में तेरे मर जाऊँगा इससे ज़ियादा क्या होगा

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