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अब तेरे मेरे बीच कोई फ़ासला भी हो हम लोग जब मिले तो कोई दूसरा भी हो तू जानता नहीं मेरी चाहत अजीब है मुझको मना रहा हैं कभी ख़ुद खफ़ा भी हो तू बेवफ़ा नहीं है मगर बेवफ़ाई कर उसकी नज़र में रहने का कुछ सिलसिला भी हो पतझड़ के टूटते हुए पत्तों के साथ-साथ मौसम कभी तो बदलेगा ये आसरा भी हो चुपचाप उसको बैठ के देखूँ तमाम रात जागा हुआ भी हो कोई सोया हुआ भी हो उसके लिए तो मैंने यहाँ तक दुआएँ कीं मेरी तरह से कोई उसे चाहता भी हो -बशीर बद्र
# Gandhigiri नही हुं मैं गांधी उस समय की यह बात है, जब नही थे पैरों मे महंगें जूते, नही थी अपनी जमीं, पर थे दिल सोने के,थे दिलोमें वतन के लिए शोले, आज वो आग बूझ सी गई है, खलती है तुम्हारी कमी, बापू आज तुम भी कहते,'चल भाई साथ में कही रोले।' बंध करो यह फरेब सारा, मत कहो मुझे महात्मा, जरा खोजो अपने भीतर की सोई हूई आत्मा, ये कैसी आजादी, की तुम हर फरेब पर खामोश हो, सब हवस, सारें काले कामों का करदो तुम खात्मा । अगर अभी भी सिर जुकाऐ सब सेहते हो तुम, तो आज सही माइनो में मरा हूं मैं,नही हुं मैं गांधी ना ही मैं अब से महात्मा ।
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