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जिस शिद्दत से लगे हो, तुम ख़ुदा ढुंढ़ने में माहिर बनगए समजलो, अब तुम बुरा ढूंढने में साज़िश करके आये हो, तुम क़त्ल की मेरी काम निग़ाह से लो वक़्त लोगे, तुम छुरा ढूंढने में जितना मिलता हैं उतना ही अपने पास रखलों आधा इश्क़ भी खो दोगे, तुम पूरा ढूंढने में हक़ीम ने इलाज किया ही नहीं कोई आम मर्ज़ था क्या मलतब हैं उसके लीये, अब नूरा ढूढ़ने में ख़ामियों पे तुमने क्या ख़ूब ग़ौर किया हैं मेरी गिलास पूरा भरा था लगें थे तुम अधूरा ढूढ़ने में 2122 1212 2212 2222 22 हिमांशु
माँ के हौसलों में कहां कोई कमी दिखती है ये वो मक्का है जहां काएनात ज़ुकती है जब भी परेशां होता हूं तो लीपट जाता हूं ये चौराहें पर तो हर मुसीबत रुकती है ए ख़ुदा फ़िर कभी मांगूंगा जन्नत की दूआ उनके पैरों तले मुजको जन्नत ही दिखतीं है कीतनी ख़्वाहिश होंगी दफ़्न उसके दिल मैं वो न चील्लाती है न तो क़भी चीख़ती है वोह क्या लीखेंगे मेरी क़िस्मत क़ा हीसाब मेरी माँ ख़ुद ही मेरी क़िस्मत लिखतीं है हिमांशु
मेरे इश्क़ का रिश्ता उस और से गुज़र रहा हैं में बेजान सी सड़क हूँ वो रेल सा चल रहा हैं आज भी उसकी याद मैं चाय दो कप बनाता हूँ तू बता यादों का मौसम वहां कैसा चल रहा है किसीने पूछा है मुझसे समशान का सबब, तो वहां मुर्दा जल रहा है यहाँ जिन्दा जल रहा है में अब्ब अभी उसी मोड़ पे खड़ा रह गया हूँ और तू मुझसे बिछड़ के बड़ा तेज़ चल रहा है वक़्त सबको ही बाटता है कुछ नायाब से तोहफे वहां चाँद निकलता है, जहाँ सूरज ढल रहा हैं ये तो तय है की वो इश्क़ से ही परेशान होगा, जो मस्जिद के बहाने मैख़ाने से निकल रहा हैं हिमांशु
Listen to इश्क़ का इतवार by himanshu mecwan #np on #SoundCloud https://soundcloud.com/himanshu-mecwan/uuvrbko0n9pr तेरे इनकार का लहजा भी क्या कमाल है? जवाब दे दिया तूने, और सवाल बरक़रार हैं किसी ने पूछा इश्क़ का मौसम कैसा है ? औस आंसू समजलो और पत्ज़ड प्यार है तू गर तीर है तो तरकश मुकाम नहीं तेरा आ और वार कर दिल छल्ली होने तैयार है किताबी बातें मरे समज के परे ही है जानो इश्क़ समज न सको तुम तो पढाई बेकार है यहाँ कोई चुनावी मसला हो ही नहीं सकता दिल है हमारा, ताउम्र आपकी ही सरकार हैं तिरछी निगाहों से तुम देखना छोड़ते क्यूँ नहीं मसला फ़िर वही, की तुम्हे भी हमसे प्यार है मैं तुजे याद करू तेरी ही सहूलियत की तरह तुम रोज़ कहती हो की आज इश्क़ में इतवार है हिमांशु
Listen to वक़्त वक़्त की बात है by himanshu mecwan #np on #SoundCloud https://soundcloud.com/himanshu-mecwan/xxg8ceh6o8si बदलता हैं रूख़ हर कोई ज़माने मैं ये वक़्त वक़्त की बात हैं हकीकत मैं जीता हैं कोई कोई फ़साने मैं, वक़्त वक़्त की बात है इसी लिए शायद शिक़स्त हो गई मेरी जहाँ में दौड़ ने की जगह लगा था बैसाखियां बनाने मै, वक़्त वक़्त की बात है उसके सफ़र की सलामती की दुआ कर रहा था और वो चले थे मुझसे ही दूरियां बढ़ाने मैं, वक़्त ककत की बात हैं हुआ न मुक्कमल तो खेल ख़त्म क्यों नहीं करते ? क्या मजा आ रहा है मुझे इतना सताने मैं, वक़्त वक़्त की बात है आज भी मैं सुबह उस तस्वीर को ताड़ता रहेता हूँ सदियां लग सकती हैं शायद उसे भूलने भुलाने मैं, वक़्त वक़्त की बात हैं हिमांशु
बेबसी, तन्हाई और अकेलापन, समजे ये सब ही है इश्क़ की विरासत, समजे अश्क़ पानी से बहेंगे तुम्हारे और सुनो न कर सकोगे किसीसे शिकायत, समजे वक़्त की तासीर बदलने की सोचना मत ये बदल देता है सबकी सियासत, समजे जहाँ मैं था आज कोई और हैं कल कोई इसे ही कहते है लकीरें हुक़ूमत, समजे हरा और भगवा रंग ही है और रंग ही है इसे न घसीटो अहिले सियासत, समजे मैं और तन्हाई बड़े ही खुश हैं दोनों ही न चाहिए न चाहिए कोई हिदायत, समजे अब नसीबी है मजबूर और खुदा भी तो किस से क्यूँ मांगे इस से रिहायत समजे जलना हैं आसान अकेले ही अकेले फीर न मांगी न मांगेगे किसीसे भी राहत समजे हिमांशु
ख़बरदार, जो चुनाव मैं मजहब लाये तो चोकीदार, साहूकार बड़ी अदब मैं आये हो अभी रगड़लोगे हमारे सामने रटते भाषण सरकार, बहुत देर बाद मिलने अब आये हो घसीटो गे गाय और बकरी को चुनाव मैं शर्मसार, सियासत से भरे लब लाये हो हमें न मतलब है तुम्हारे वादों से इरादों से आसार, है जूठ भर भर के सब लाये हो हरा भी है केसरी भी हमारे जंडे मैं सुनो खूंखार, मिलेंगे हम अगर उसे बाट लाये हो हिमांशु
बातें तो हज़ार करते हो, सुना है महोब्बत उधार करते हो, सुना है जब भी जरूरत हो इश्क़ की तुम भरते हो इश्तहार, सुना है ये जो वक़्त है, संभल जाना आता नहीं बार बार, सुना है अच्छा मयकदा ये ही रस्ते पे हैं उसका अच्छा है व्यापार सुना है ये जो अंगूठी हैं, सगाई की हैं जल्द ही आ रहा त्यौहार सुना है अशिक़ो के मुँह कतैह न लगाना होते है बहुत धारदार सुना है हिमांशु
ये दरिया जो इतना उछलकूद कर रहा है आस पास तेरे होने का वज़ूद भर रहा है में क्या जाके मस्जिद मैं नमाज़ी अदा करूँ ? खुदा भी तो आहें क्या खूब भर रहा हैं लकीरों ने बांटे हैं दो मुल्क तो क्या हैं? वहाँ चलता हैं पैसा यहाँ रुपैया खूब चल रहा है पेड़, रास्ता और सड़के सभी की कसम कोई मेरे होते हुए भी मुझे बे वजूद कर रहा है मेरी आधी रिंग पर उठाती थी कभी फोन मेरा अब नेटवर्क का मसला क्या खूब चल रहा है हिमांशु
उसे राह चाहिए थी, रास्ता दिया हमने ज़िन्दगी को जिन्दगी का वास्ता दिया हमने ज़माना लाख पूछता रहा तन्हाई का सबब जवाब पलटकर खुदा न खास्ता दिया हमने वो चिल्लाके कर रहा था इश्क़ की नुमाइश ख़ामोश रहे हम जवाब आहिस्ता दिया हमने सौदा होने के बाद अब पछतावा कैसा हैं नायाब सा दिल तुम्हे बहुत सस्ता दिया हमने ये लकीर जो तुमने खिंच के रखी है दरमियां उसे हलके से ही सही थोडा खिसका देय हमने मस्ज़िद मैं जाके उसने जुदाई की दुआ की तो हस्ते सज़दे मैं इश्क़ का रिश्ता दिया हमने हिमांशु
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