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Gautam Kothari sanatni

Gautam Kothari sanatni

@gautamkotharisanatni4025


#वो_अंतर_रह_ही_गया !!!
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बचपन में जब हम रेल की सवारी करते थे, माँ घर से खाना बनाकर ले जाती थी l पर रेल में कुछ लोगों को जब खाना खरीद कर खाते देखता बड़ा मन करता हम भी खरीद कर खाए l पापा ने समझाया ये हमारे बस का नहीँ l अमीर लोग इस तरह पैसे खर्च कर सकते हैं, हम नहीँ l बड़े होकर देखा, जब हम खाना खरीद कर खा रहें हैं, वो लोग घर का भोजन ले जा रहे हैंl "स्वास्थ सचेतन के लिए"। वो अंतर रह ही गया l

बचपन में जब हम सूती कपड़ा पहनते थे, तब वो लोग टेरीलीन पहनते थे l बड़ा मन करता था पर पापा कहते हम इतना खर्च नहीँ कर सकते l बड़े होकर जब हम टेरीलीन पहने लगे तब वो लोग सूती के कपड़े पहनने लगे l सूती कपड़े महंगे हो गए l हम अब उतने खर्च नहीँ कर सकते lअंतर रह ही गया ।

बचपन में जब खेलते खेलते हमारी पतलून घुटनों के पास से फट जाता, माँ बड़ी ही कारीगरी से उसे रफू कर देती और हम खुश हो जाते l बस उठते बैठते अपने हाथों से घुटनों के पास का वो रफू हिस्सा ढक लेते l बड़े होकर देखा वो लोग घुटनों के पास फटे पतलून महंगे दामों में बड़े दुकानों से खरीदकर पहन रहे हैं l अंतर रह ही गया
बचपन में हम साईकिल बड़ी मुश्किल से पाते, तब वे
स्कूटर पर जाते l जब हम स्कूटर खरीदे, वो कार की सवारी करने लगे और जबतक हम मारुति खरीदे, वो बीएमडब्लू पर जाते दिखे l और हम जब रिटायरमेन्ट का पैसा लगाकर BMW खरीदे अंतर को मिटाने के लिए तो वो साईकिलिंग करते नज़र आये स्वास्थ्य के लिए। अंतर रह ही गया।

हर हाल में हर समय दो लोगो में अंतर रह ही जाता है , अंतर सतत है सनातन है सदा सर्वदा रहेगा , कभी भी दो व्यक्ति और दो परिस्थितिया एक जैसी नहीं होती। इसलिए जिस हाल में हो जैसे हो प्रसन्न रहे , कही ऐसा न हो कल की सोचते सोचते आज को ही खो दे और फिर कल इस आज को याद करे।

?प्रभु को हर बात पर याद करें - धन्यवाद ज़रूर दें ?
?श्री राधे कृष्ण:शरणं ममः?
??जय जय श्री कृष्णा जी ??

#आर्यवर्त

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अद्भुत शिल्पकारी का अत्यंत मनोहारी नमूना...
तारंगा जैन मंदिर...
चुली (गुजरात)

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कभी ठंड में ठिठुर के देख लेना,
कभी तपती धूप में जल के देख लेना।
कैसे होती है हिफाज़त मुल्क की,
कभी सरहद पर चल के देख लेना।
कभी दिल को पत्थर करके देख लेना,
कभी अपने जज्बातों को मार के देख लेना।
कैसे याद करते है मुझे मेरे अपने,
कभी अपनों से दूर रहकर देख लेना।
कभी वतन के लिए सोच के देख लेना,
कभी माँ के चरण चूम के देख लेना।
कितना मज़ा आता है मरने में यारो,
कभी मुल्क के लिए मरके देख लेना।
कभी सनम को छोड़ के देख लेना,
कभी शहीदों को याद करके देख लेना।
कोई महबूब नहीं है वतन जैसा यारो,
मेरी तरह देश से कभी इश्क करके देख लेना।
मेरी तरह देश से कभी इश्क करके देख लेना !!
शहीदों को सत् सत् नमन...!!

?!!जय हिन्द !!?

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कभी सनम को..
छोड़ के देख लेना,
कभी शहीदों को..
याद करके देख लेना,
कोई महबूब नहीं है..
वतन जैसा यारो,
देश से कभी इश्क..
करके देख लेना...!!

?!! जय हिन्द !!?

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पहले विदूषक को रूप बदलने....
के लिए रंग बदलना पड़ता था!!
वेश बदलना पड़ता था!!
आज कलयुगी मनुष्य...
कलयुगी चकाचोंध में...
इतना आगे बढ़ गया है कि...!!
सामने के घर में मरने वालो को...
श्रद्धांजलि दे आये..
वही उदाशीनत चहरा लिए...!!
बाजुमें ही शुभ प्रसंग पे...
३६ पकवान का भोज कर आये...
हँसता हुवा मुख ले के...!!
और वही लिबाज में...
रास्ता पार करके..
मंदिर प्रभु दर्शन कर आये...
गम्भीरं मुख मुद्रा ले के...!!
आपको नही लगता...
विदूषक!!!...
से भी रंग बदलने में...
आगे बढ़ गया...
आजका कलयुगी...
छद्मधारी मनुष्य...!!!??

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"मन" सभी के पास होता है..
मग़र..
"मनोबल" कुछ लोगो के पास ही होता है!!!

जब जब लोग परेशान हो जाते हैं
काफी हद तक इन्शान हो जाते हैं...

??संघे शक्ति कलियुगे??

ये लड़ाई यूरोप के सभी स्कूलो मेँ पढाई जाती है पर हमारे देश में इसे कोई जानता तक नहीं।

एक तरफ 12 हजार अफगानी लुटेरे .....
तो दूसरी तरफ 21 सिख .......

अगर आप को इसके बारे नहीं पता तो आप अपने इतिहास से बेखबर है।

आपने "ग्रीक सपार्टा" और "परसियन" की लड़ाई के बारे मेँ सुना होगा ......

इनके ऊपर "300" जैसी फिल्म भी बनी है ....

पर अगर आप "सारागढ़ी" के बारे मेँ पढोगे तो पता चलेगा इससे महान लड़ाई सिखलैँड मेँ हुई थी ......

बात 1897 की है .....

नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर स्टेट मेँ 12 हजार अफगानोँ ने हमला कर दिया ......

वे गुलिस्तान और लोखार्ट के किलोँ पर कब्जा करना चाहते थे ....

इन किलोँ को महाराजा रणजीत सिँघ ने बनवाया था .....

इन किलोँ के पास सारागढी मेँ एक सुरक्षा चौकी थी .......

जंहा पर 36 वीँ सिख रेजिमेँट के 21 जवान तैनात थे .....

ये सभी जवान माझा क्षेत्र के थे और सभी सिख थे .....

36 वीँ सिख रेजिमेँट मेँ केवल साबत सूरत (जो केशधारी हों) सिख भर्ती किये जाते थे .......

ईशर सिँह के नेतृत्व मेँ तैनात इन 20 जवानोँ को पहले ही पता चल गया कि 12 हजार अफगानोँ से जिँदा बचना नामुमकिन है .......

फिर भी इन जवानोँ ने लड़ने का फैसला लिया और 12 सितम्बर 1897 को सिखलैँड की धरती पर एक ऐसी लड़ाई हुयी जो दुनिया की पांच महानतम लड़ाइयोँ मेँ शामिल हो गयी .....

एक तरफ 12 हजार अफगान थे .....

तो दूसरी तरफ 21 सिख .......

यंहा बड़ी भीषण लड़ाई हुयी और 600-1400 अफगान मारे गये और अफगानोँ की भारी तबाही हुयी .....

सिख जवान आखिरी सांस तक लड़े और इन किलोँ को बचा लिया ........

अफगानोँ की हार हुयी .....

जब ये खबर यूरोप पंहुची तो पूरी दुनिया स्तब्ध रह गयी ......

ब्रिटेन की संसद मेँ सभी ने खड़ा होकर इन 21 वीरोँ की बहादुरी को सलाम किया .....

इन सभी को मरणोपरांत इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट दिया गया .......

जो आज के परमवीर चक्र के बराबर था ......

भारत के सैन्य इतिहास का ये युद्ध के दौरान सैनिकोँ द्वारा लिया गया सबसे विचित्र अंतिम फैसला था ......

UNESCO ने इस लड़ाई को अपनी 8 महानतम लड़ाइयोँ मेँ शामिल किया ......

इस लड़ाई के आगे स्पार्टन्स की बहादुरी फीकी पड़ गयी ......

पर मुझे दुख होता है कि जो बात हर भारतीय को पता होनी चाहिए ......

उसके बारे मेँ कम लोग ही जानते है .......

ये लड़ाई यूरोप के स्कूलो मेँ पढाई जाती है पर हमारे यहा जानते तक नहीँ

#आर्यवर्त

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मित्रोआज मंगलवार है, पवनपुत्र हनुमानजी महाराजका दिन है, आजके पावन दिवसका आंरभ हनुमानजी महाराजके गुणगान से करते हैं।

*प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यान घन।
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर॥

भावार्थ:-मैं पवनकुमार श्री हनुमान्‌जीको प्रणाम करता हूँ, जो दुष्ट रूपी वनको भस्म करनेके लिए अग्निरूप हैं, जो ज्ञानकी घनमूर्ति हैं और जिनके हृदय रूपी भवनमें धनुष-बाण धारण किए श्रीरामजी निवास करते हैं॥

आजके दिन का आरम्भ भगवान् श्रीरामजी के परमभक्त श्री हनुमानजी महाराजके किसी प्रसंगसे करते हैं, श्री हनुमानजी जनेऊ कौन सी पहनने थे? "काँधे मूँज जनेऊ साजे" एक मूँज घास है जो खुरखुरी और तीखी होती है, पहले तपस्वी मूँजका जनेऊ धारण करते थे।

शायद इसीलिये धारण करते थे कि हमेशा हमारे कन्धे को खुजलाती रहे हमको विस्मरण न हो जायें, जैसे-समाज ऋण, देवऋण, ऋषिऋण, पितृऋण ये विस्मृत न हो जायें इसलिये हमारी गर्दन को हर समय खुजलाती रहे, श्री हनुमानजी महाराज भी मूँजका जनेऊ इसलिये धारण करते थेकि श्री हनुमानजी ब्रह्मचर्यके प्रतीक है, तपस्वीके प्रतीक है।

ब्रह्मचारीके भी दो अर्थ है, एक,तो जिसने शुक्रको स्खलन नहीं होने दिया, यह ब्रह्मचर्यका एक श्रेष्ठ सवरूप है, ऐसे बहुतसे पहलवान हैं जिन्होंने अपने शुक्रका स्खलन नहीं होने दिया, लेकिन उन्हें कोई श्रेष्ठ ब्रह्मचारी नहीं माने जाते, ब्रह्मचर्यका अर्थ है जिसकी चर्या ब्रह्म जैसी हो, जो चौबीस घण्टे,प्रतिपल,प्रतिक्षण ब्रह्मकी चर्या में डूबा है?

हम ब्रह्म की चर्चा तो करते हैं लेकिन हम ब्रह्म की चर्यामें नहीं डूबते, आप वैष्णवोंको पतित होते बहुत कम सुनेंगे, ज्ञानीका हो सकता है लेकिन भक्तका पतन नहीं होता है, भगवान श्रीकृष्णजीने गीता में भी घोषणा की है, कि मेरे भक्तका पतन नहीं होता, इसलिये वैष्णवोंका भी पतन नहीं होता, क्यों? क्योंकि वैष्णव साधु सदैव भगवानकी सेवामें रहते हैं और जो चौबीस घण्टे सेवामें रत रहेगा वह विकृत नहीं हो सकता, उसका कभी पतन नहीं हो सकता।

प्रातःकालसे वैष्णव प्रभुकी सेवामें कथा,जागरण,मंगला आरती करता है,स्नान कराना,श्रृंगार करना,फिर प्रात:कालकी आरती करनी,भोग लगाना,शयन कराना, उत्थापन कराना,फिर संध्या आरती करता है,यानी प्रात:कालसे लेकर एक क्षण भी इधर-उधर नहीं चौबीस घण्टे मन भगवान् की सेवा में और जो प्रतिपल भगवानके सेवामें है तो मन में पवित्रता ही तो होगी,शुद्धता ही तो होगी,शुद्ध और पवित्र मन में कभी विकार प्रवेश ही नहीं कर सकता,इसलिये वैष्णवों को ब्रह्मचर्य कहा गया है।

इसीको भजन कहा है भजन कोई क्रिया नही,भजन कोई नौकरी नहीं है, भजन एक जीवन जीनेकी शैली है,भजन जीवन की चर्या है,उठते-बैठते,सोते-जागते,चलते-फिरते भजन करना माने भगवानमें डूबे रहना,भजन करना माने भगवान् में जगना,उठना,बैठना,नहाना,खाना,चलना,पीना भगवान् के अतिरिक्त कुछ और है ही नहीं,हर श्वांस में उसी की धडकन,उसी की यादें,भगवान् सुमिरन में बने रहे, किसी ने बहुत अच्छा गाया है!

हर धड़कनमें प्यास है तैरौ, श्वासोंमें तेरी खुशबू है।
इस धरतीसे उस अम्बर तक,मेरी नजरमें तू ही तू है।
प्यार ये टूटे ना, तू मुझसे रूठो ना,साथ ये छूटे कभी ना।
तेरे बिना भी क्या जीना,प्रभु रे तेरे बिना भी क्या जीना।
फूलोंमें कलियो में,सपनों की गलियों में।
तेरे बिना कुछ कहीं ना, तेरे बिना भी क्या जीना।
तेरे बिना भी क्या जीना, प्रभु रे, तेरे बिना भी क्या जीना।

हरेकृष्ण हरेकृष्ण, कृष्ण-कृष्ण हरेहरे।
हरेराम हरेराम, राम-राम हरेहरे।।

??जयजय श्रीराम??
??जयजय श्रीकृष्ण??

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