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saGar

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@findsagargmail.com6348


थक गया हूँ मैं भले ही
मैं मगर हारा नहीं हूँ...
वक़्त हो कितना भी कातिल
वक़्त का मारा नहीं हूँ !!

दीप मेरा आँधियों में लड़खड़ाता ही सही
पर जल रहा है....
हौसला बोझिल हुआ सा डगमगाता ही सही
पर चल रहा है !

रौशनी की लकीरें कुछ दिखें या न सही ,
घबरा के दम को घोंट लूं , मैं वो अँधियारा नहीं हूँ
थक गया हूँ मैं भले ही, मैं मगर हारा नहीं हूँ !!

नाव मेरी इस भंवर में फस चुकी हो भले
डूबी नहीं है...
डाली डाली बागबाँ की छितरी पड़ी हो भले
सूखी नहीं है !

ज्वार ऊँचा हो भले आकाश से, होता रहे
इस प्रलय में डूब जाऊं,
सागर का वो किनारा नहीं हूँ ...
थक गया हूँ मैं भले ही, मैं मगर हारा नहीं हूँ !!

- ( सागर 2010 )

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यह मौन
यह घनीभूत सौंदर्य से
परिपूर्ण मौन-
रुक गया है कहीं,
कहीं भूल गए हैं सब
ऊपर उठना,
भीतर उतरना !

मांद से चाँद तक
पहुँचा जा सकता है
स्वयं तक क्यों नहीं
रोकता है
एक अपरिभाषित संकोच
कभी तो निकलना ही होगा
इस अँधेरे से

बुद्धत्व की सम्भावना
सर्वव्याप्त है
खोजना होगा
पाना होगा - स्वयं को
बुद्ध होना आवश्यक है
अपरिहार्य भी
.....होना ही होता है
............होना ही होगा !

जागो...
मेरे मन अचेतन !!

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आज बहुत दिन बाद
दोनों अकेले थे घर में
तन्हाई देख
उसने पत्नी से कहा
चलो आज कुछ करते हैं
पत्नी ने अविश्वसनीय भाव से देखा, अचानक...
कहा कुछ नहीं
प्रश्न मौन था
वो नज़दीक आकर दबी आवाज़ में बोला
"चलो आज गले मिलकर रोते हैं
खूब रोते है
क्या पता फिर ये मौका
मिले ना मिले ..."

और फिर.....

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