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દિવ્યેશ ચોચા

દિવ્યેશ ચોચા

@divyeshchocha
(11)

અડીખમ આહીર વીર શ્રી દેવાયત બોદરના શુભ ચરણોમાં હર દિન કોટી કોટી વંદન.🚩

હવે તો આંખો પણ સુકાઈ ગય છે,
તમને જોયાના વર્ષો વીતી ગયા છે,
તમારી એક ઝલકની વાટે તો
આંખોના અંતિમ શ્વાસ રોકાયેલાં છે.

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આજે રાત્રે 9 વાગ્યે
https://youtube.com/AdikhamAhirSamaj
@adikhamahirsamaj

हालांकि भगत सिंह रक्तपात के पक्षधर नहीं थे परंतु वे बामपंथी (कम्युनिस्ट) विचारधारा से पूरी तरह से प्रभावित थे इसी कारण पूंजीपतियों की मजदूरी के प्रति शोषण की नीति उन्हें समझ नहीं आती थीं" वे चाहते थे कि मजदूर विरोधी नीति संसद में पारित न हो सके , उनके साथ पूरा देश यह चाहता था कि अंग्रेजों को यह पता चलना चाहिए कि हिंदुस्तानी जग चुके है और उनके हृदय में ऐसी नीतियों के प्रति आक्रोश है, ऐसा करने के लिए उन्होंने दिल्ली की केंद्रीय एसेम्बली में बम फेकने की योजना बनायी। भगत सिंह चाहते थे खून खराबा न हो पूरी योजना के तहत भगतसिंह तथा बटुकेश्वर दत्त का नाम चुना गया , निर्धारित कार्यक्रमानुसार 8 अप्रैल 1929 को असेम्बली में ऐसे स्थान पर बम फेंके जहाँ पर कोई मौजूद न था क्योंकि उनका उद्देश्य स्पष्ट रूप से राष्ट्र के नाम एक संदेश देना जिससे कि सम्पूर्ण विश्व का ध्यान भारत की तरफ आकृष्ट हो सके - बम फेकते हि पूरे असेम्बली  में अफरा तफ़री का माहौल बन गया और इन्कलाब जिंदाबाद साम्राज्यवाद मुर्दाबाद की गूज पूरे सदन में सुनाई देने लगी  उस वक़्त वो चाहते तो भाग भी सकते थे परंतु यह उनके उद्देश्य के प्रतिकूल था,  फलस्वरूप उन्हें फांसी की सजा सुनाई गईं ।

   . तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष पं.मदन मोहन मालवीय ने वायसराय के सामने 14 फरवरी 1931में  तथा महात्मा गांधी द्वारा 17 फरवरी 1931 को वायसराय से सजा माफ़ी हेतु बात किया गया परंतु  "यह सब कुछ भगतसिंह की इक्षा के विपरीत हो रहा था"।

     अंततः 23 मार्च 1931 शाम 7.33 को भगतसिंह तथा इनके दो साथी  सुखदेव तथा राजगुरू को फाँसी दे दी गयी।

     फाँसी के पहले 3 मार्च को अपने भाई कुलतार को भेजे एक पत्र में भगत सिंह ने लिखा था -


उन्हें यह फ़िक्र है हरदम, नयी तर्ज़-ए-ज़फ़ा क्या है?

हमें यह शौक है देखें, सितम की इन्तहा क्या है?

दहर से क्यों ख़फ़ा रहें, चर्ख का क्या ग़िला करें।

सारा जहाँ अदू सही, आओ! मुक़ाबला करें।।

 . इन जोशीली पंक्तियों  से उनके शौर्य का अनुमान लगाया जा सकता है।।

"भगतसिंह हर एक हिंदुस्तानी के लिए आदर्श प्रेरणप्रति के रूप में आज भी हमारे बीच मे जिंदा  हैं" 

             

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#બરાબર #શહીદદિવસ

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सरदार भगत सिंह


     "बीसवीं सदी का शुरुआती दौर भारत पूरी तरह से गुलामी की जंजीरों में बंधा हुआ था, जहाँ एक तरफ नियामिकी शाशन के माध्यम से सामान्य मानवीय के हितों को अनदेखा कर साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा की व्यापक मानसिकता वाले विचारो के साथ भारतीय समाज को कुचलने की कोशिश की जा रही थी, वहीँ दूसरी तरफ देश के अंदर राष्ट्रवाद की भावना शैशवावस्था से प्रौढ़ावस्था की तरफ अग्रसित हो रही थी। 

         " सितंबर 1907 ईसवी में पंजाब के लायलपुर जिले में देश के महान क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह का जन्म हुआ जो भारत ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व के आदर्श सिद्ध हुए"  13अप्रैल 1919 ईसवी में जलियांवाला बाग हत्याकांड से पूरा देश शोक में डूब चुका था उस वक्त भगत सिंह मात्र 12 वर्ष के थे यह खबर सुनकर उनसे रहा नहीं गया और मिलो पैदल चलकर जलियावाला बाग़ पहुंचे, जलियावाला बाग़ हत्याकांड भगतसिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला, जिसके कारण लाहौर में नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर भगतसिंह ने नौजवान सभा की स्थापना की। 

        भगतसिंह अपने चाचाओं की किताबें पढ़कर सोचते थे कि इनका रास्ता  सही है कि नहीं, गाँधीजी का असहयोग आंदोलन छिड़ने के पश्चात गांधीजी के अहिंसात्मक तरीको औऱ क्रांतिकारियो के हिंसक आंदोलनों में से अपने लिये रास्ता चुनने लगे,  गांधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन रद्द करने के पश्चात गांधीजी के प्रति थोड़ा रोष जरूर उत्पन्न हुआ परंतु पूरे राष्ट्र की तरह वे भी  गांधीजी का सम्मान करते थे और उन्होंने स्वतंत्रता के लिये हिंसात्मक क्रांति का मार्ग चुना।

           काकोरी काण्ड में रामप्रसाद बिस्मिल सहित 4 क्रांतिकारियो को फांसी की सज़ा व 16 अन्य की कारावास की सजाओ से भगतसिंह इतने उद्विग्न हुये कि पंडित चंद्रशेखर आज़ाद के साथ उनकी पार्टी रिपब्लिकन एशोसिएशन से जुड़ गये और उसे एक नया नाम दिया हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एशोसिएशन  जिसका उद्देश्य - सेवा, त्याग, और पीड़ा झेल सकने वाले नौयुवको को तैयार करना था।

         1928 ईसवी में साइमन कमीशन के बहिष्कार के लिए भयानक प्रदर्शन हुये और इस प्रदर्शन में भाग लेने वलो पर अंग्रेजी शाशन द्वारा लाठी चार्ज कर दिया गया जिससे आहत होकर लालालाजपत-राय की मृत्यु हो गईं, यह घटना सरदार भगतसिंह के लिए किसी भी कीमत पर बर्दास्त योग्य नही था और उन्होंने एक गुप्त योजना के तहत पुलिस सुपरिंटेंडेंट स्कॉट को मरने की योजना सोची। 17 दिसंबर1928 को करीब सवा चार बजे पूर्व योजना के तहत ए. एस. पी. सांडर्स के आटे हि राजगुरू  ने पहली गोली सीधी उसके सर पर चलाई तत्पश्चात भगत सिंह ने 3-4  गोली दाग कर उसको मौत के घाट उतार दिये इस तरह से इन लोगो ने लालालजपत रॉय के मौत का बदला लिया।

  to be continue....
#બરાબર #શહીદદિવસ

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તમારી પથારી ફેરવવા વાળા તમારા જ હોય છે...

કેમ કે

બીજી ને થોડી ખબર છે કે તમે પથારી કયાં કરી છે...

તું નથી આ શબ્દ ના આકાર મા,
તું નથી આ સુર ના શણગાર મા,
કયા નજાકત તારી ને કયા આ જગત,
સાચવુ તેથી આહિરાણી તને દિલ ના ધબકારા મા.
#ahir #ahirat #ahirani

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ના ગોફણ ના ગિલોલ કે ના ગન થી મરે...
આ આહિર તો આહિરાણી
તારા પાપણ ના પલકારા થી મરે છે...
#ahirani
#ahir

એ આહિરાણી તારી આખ નો નશો એટલો છે કે
સિગારેટ, ડ્રગ્સ, ગાંજો, દારૂ...
આ કોઈ ની અસર નથી થતી...
#ahirani
#ahir

??जय जवान जय किसान ??

आइए हम सब आपने अपने गांवों मे आने वाले 15अगस्त के रास्ट्रीय पर्व के अवसर पर अपने आर्मी जवानो जो retired हे वे ओर जो आर्मी जवान छुट्टियों मे आए हे उन सभी जवनो का सम्मान करने का प्रयास करते हे ।

हर साल की तरह जो करते आ रहे हैं एसा नही चलेगा,

क्यौंकि हम एन जवानो की वजह से शन्ति से जी रहे हैं ।
रास्ट्र मे कुच्छ आपति आती हे तो पहले जवानो को बुलाया जता हे ।
वो अपनी जिमेदारी सही से निभा रहे हैं ।

तो क्या हमरी एक जिमेदारी नही बनती की हम उन जवानो का सम्मान करे ।

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