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दिल का क्या है, कहीं भी लग जाता है। तबाह तो तब होता है, जब कहीं ठहर जाता है।। -दिनेश कुमार कीर
हर रंग देखा दुनिया का मैंने, पर दिल में स्नेह का समंदर है, हैं रंग हजारों मेरे भी, हर रंग ही खुद में सुंदर है, दुनिया के लिए मैं कोई और सही... हो शहरों का ये दौर सही... लेकिन भोला – भाला, मतवाला सा... एक ’गांव का लड़का’ मेरे अंदर है... -दिनेश कुमार कीर
सच हमेशा फैसला करवाता है, मगर, झूठ व्यक्तियों में फासला करवाता है... -दिनेश कुमार कीर
कई बार दरीचों से छूटता नज़र आता है कोई जैसे घर याद आये वैसे ही याद आता है कोई ये शोखियां, ये शिकायतें मेरे हक़ में हैं मगर रूठने के बजाय कैसे छोड़ जाता है कोई। -दिनेश कुमार कीर
बहुत कुछ सिखाया ज़िंदगी के सफ़र ने अनजाने में, वो किताबों में दर्ज था ही नहीं जो पढ़ाया सबक़ जमाने ने… -दिनेश कुमार कीर
आज के दौर में दिल की कीमत क्या है इसको तो यहाँ हर कोई छला करता है मुफ्त की पड़ती है शायरी आज कल दिल जला कर जो लिखना पड़ता है -दिनेश कुमार कीर
नाज़ तब से है हाथो की रेखाओं पर आप जब से मेरे राशिफल हो गए -DINESH KUMAR KEER
टटोल खुद को ए मन देख जरा, किसी कोने में पड़ी ज़िन्दगी लौट आएगी -दिनेश कुमार कीर
वक्त से हारा या जीता नही जाता, केवल सीखा जाता हैं... -दिनेश कुमार कीर
हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है जिस तरफ़ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा ... -दिनेश कुमार कीर
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