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Anupama

Anupama

@chauhananupama2020gmail.com1631


बहुत विश्वास से दे दिया लाडली का हाथ उसके हाथ में।
एक भरोसे की नींव रखी,उसके साथ जीने की आस में।
बड़ी ही नाज़ुक होती है ये विश्वास की डोर भी,
ज़िंदगी सुकून से गुज़र जाती है ;तो कभी बस कट जाती है साथ में।

#विश्वास

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बड़ी आसानी से कह दिया उसने
करती क्या हो तुम दिन भर घर में..?
उसने भी मुस्कुरा कर कह दिया,
बस इस सूनी मंज़िल को घर बनाती हूँ।

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मुस्कुरा दिये वो हमारी मुस्कान देख कर,
शायद वो प्यार आज फ़िर हरा हो गया था।।

#संघर्ष
आज ही तो अण्डे से निकली थी वो,
पर पंख फड़फड़ाने को मचल रही थी।
आसमां उसे पुकारता अपनी ओर कभी तो,
रोकती नन्हीं को हवा; जो तेज़ जो चल रही थी।
जैसे ही उसने पंख फैलाये ज़रा ही,
सहसा ही वो जमीं पर गिर पड़ी।
मैं यूँ ही उसे ताकती रही,
थोड़ी डर उसे यूँ ही खड़ी खड़ी।
फ़िर से उसने हिम्मत जुटाई,
अपनी पंखों को फैला आकाश को छूना था।
संघर्ष की घड़ी में भी लेकिन,
उस चिड़िया में अभी भी जोश दुगुना था।।
फ़िर उड़ चली वो एक दिन,
मंज़िल उसकी "ऊंची उड़ान" जो थी।
छिपकर कसे रहे अपनी पंख समेटे,
आसमान में उड़ने में ही शान जो थी।।
फ़िर एक शिकारी आया जाल बिछाया।
अपनी उस जाल में उस मासूम को फंसाया।
अब तो पिंजरे में बन्द ज़िन्दगानी हो गयी।
जीना मरना अब एक ही कहानी हो गयी।
बेदम सी पड़ी रही वो कुछ दिन,
तभी शिकारी उसे दाना देने आया था।
दाना ही देना नहीं था उसे तो,
आज पका के खाने का मन बनाया था।
कुछ पल चिडिया घबरा-सी गयी,
पर उसने बिल्कुल हिम्मत न हारी।
घूर कर देखा शिकारी को और,
अपनी तीखी चोंच आंख में दे मारी।
कराह उठा शिकारी ,उड़ चली चिडिया;
प्रकृति भी स्वागत में फूल बिछा रही थी।
बादल बरस बरस कर उस नन्ही के,
खुशियों में खुद खुशियां मना रही थी।।

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#गुप्त
जज़्बात इस क़दर गुप्त हैं दिल में,
चाहकर भी खुद से मुलाक़ात मुमकिन नहीं ।
उठ गया है गैरों पर से भरोसा कि,
कोई हाल भी पूछे तो बातों में यक़ीन नहीं ।
यूँ छिपाने वालों में शामिल हम न थे।
पर वक़्त के तजुर्बे ने गुप्त रखना सीखा दिया।
कौन अपना है गैरों के बीच में और,
अपनों के लिबास में छिपे गैरों को भी दिखा दिया।।

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ज़िंदगी की तिज़ोरी से वक़्त की कमी महसूस हो रही।
हम नाराज़ है खुद से या दुनिया इस नाराज़गी से खुश हो रही।