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Brij Thakkar

Brij Thakkar

@brijthakkar9317


इस गली में कुछ औरतें बाजार बनकर बैठी हैं
चंद सिक्कों में बिकने को प्यार बनकर बैठी हैं

रूह नहीं महज जिस्मों की जरूरत है सभी को
नई नवेली दुल्हनों सी वो तैयार बनकर बैठी हैं

न मंडप, न शहनाई, न पंडित-फेरों की झंझटें
आपके गले में डलने के लिए हार बनकर बैठी हैं

जान कहो, जानू कहो या जानम ही कह डालो
तुम्हें मदहोश करने के वास्ते बार बनकर बैठी हैं

आजादी के बाद भी जारी है यह ‘व्यापार’ ये
संविधान के कागजी होने का प्रचार बनकर बैठी हैं

ये औरतें सबके लिए चुनाती हैं ‘मधु’ ये सब
इंसानियत की पराजय का विचार बनकर बैठी हैं

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હવે ની પેઢીના નશીબ માં આ બધું નથી